मोक्षमार्गनी पर्याय ते समये अभिन्न छे, पण ते कायम द्रव्य साथे रहेती नथी माटे ते
कथंचित् भिन्न छे. आ रीते जो कथंचित भिन्न न होय (ने सर्वथा अभिन्न होय) तो
पर्यायनो बीजे समये अभाव थतां द्रव्यनो पण नाश ज थई जाय.–पण एम नथी.
शुद्धद्रव्यमां एकमां अग्रता–एवी जे एकाग्रता–तेनुं नाम शुद्धात्मानी भावना छे, ते
मोक्षमार्ग छे. त्रिकाळस्वभाव छे ते पोते भावनारूप नथी, ते ध्रुवध्येयरूप छे; तेमां
एकाग्र थईने पर्याय तेने ध्यावे छे. आवो मोक्षमार्ग छे. आमां तो पोताना शुद्धद्रव्य ने
शुद्धपर्याय वच्चे ज रमत छे; वच्चे रागनी तो वात ज नथी. ते तो मोक्षमार्गनी बहार
रही गयो.
बनावीने तेमां पर्याय अभेद थई, त्यां ‘आ शुद्धपर्यायने हुं करुं’ एम भेद रहेतो नथी;
त्यां शुद्धपर्याय तो सत् छे ज,–पछी तेने करूं एवो विकल्प रहेतो नथी. आवी
शुद्धपर्यायरूपे परिणमेला शुद्धआत्माने ज आत्मा कह्यो छे. ‘शुद्धपर्याय हुं करूं’ एवा लक्षे
शुद्धपर्याय थती नथी पण राग थाय छे. ने ते रागमां तन्मय वर्ते तो मिथ्यात्व थाय छे.
रागथी भिन्न ने स्वभावथी अभिन्न एवी शुद्धपरिणति ते मोक्षमार्ग छे.
ध्रुवस्वभावनो सागर तो एवो ने एवो भरपूर पूर्ण छे, तेमां पर्यायना तरंगमां वध–
घट छे. चैतन्यसमुद्र आत्मा ते द्रव्यअपेक्षाए एकरूप सदा पूरो स्थिर छे, ने
पर्यायअपेक्षाए ते तरंगरूप थाय छे, तेमां परिवर्तन थाय छे. ‘आ शुद्धपर्याय छे ने ते
द्रव्यनुं आलंबन ल्ये छे’–एवा भेद खरेखर नथी. पर्यायने अंदरमां ढाळुं–ए पण
विकल्प छे, ज्यां एवो विकल्प छे त्यां पर्याय अंतरमां ढळेली नथी. अने जे निर्मळ
पर्याय छे ते अंतरमां झुकीने शुद्ध थयेली ज छे एटले शुद्धपर्याय स्वयमेव सत् छे. जेम
ते वखते द्रव्य सत् छे तेम तेनी सन्मुख अभेद थयेली शुद्धपर्याय पण सत् छे.
‘अलिंगग्रहण’ ना अर्थमां तेनुं सरस वर्णन कर्युं छे. आवा सत् आत्माने सम्यग्द्रष्टि
अनुभवे छे. देडकुं (एटले देडकानुं शरीर नहीं पण अंदरनो आत्मा) पण अंतरमां ध्रुव
साथे पर्यायनो भेटो करीने आवा शुद्ध आत्माने अनुभवे छे. ‘द्रव्यना आश्रये
शुद्धपर्याय प्रगटी’ एम लक्षमां लेवुं ते पण व्यवहार