छे ने मोक्षमार्ग खुले छे. पछी निर्विकल्पशुद्धोपयोग क्यारेक–क्यारेक थाय छे, सदाय नथी
रहेतो; छतां, शुद्धोपयोग खसी जाय त्यारे पण सम्यक्त्वादि शुद्धपरिणति तो सळंग रहे
छे, अने ते संवर–निर्जरा–मोक्षनुं कारण छे. आत्मा पोते ईन्द्रियातीत रागातीत
शुद्धोपयोगस्वभावी होवाथी शुद्धोपयोग वडे ज ते अनुभवमां आवे छे.–आवो
वीतरागनो अलौकिक मार्ग छे.
ते उत्पाद–व्ययरूप छे. उत्पाद–व्यय–ध्रुवमां आखी वस्तु आवी गई. एक समयमां
उत्पाद–व्यय–ध्रुवनुं जे सूक्ष्मस्वरूप सर्वज्ञभगवाने जोयुं छे तेवुं स्वरूप बीजा कोईए
जोयुं नथी. सर्वज्ञे कहेलुं यथार्थ आत्मस्वरूप जाण्या वगर साचो अनुभव थाय नहि.
समयसारमां शुद्धात्मानी सन्मुख थयेल भावश्रुतज्ञानरूप अनुभूतिने आत्मा कह्यो छे;
भावश्रुत एटले उपयोगनी स्वसन्मुख एकाग्रतारूप वीतरागी पर्याय;–तेने अभेदपणे
आत्मा कह्यो छे; अने अहीं कहे छे के द्रव्य अने पर्याय ‘कथंचित् भिन्न’ छे; तेमां
बंनेमां कांई विरोध नथी.
ने पर्याय ते व्यवहार, ते अपेक्षाए द्रव्य अने पर्यायने कथंचित् भिन्नपणुं छे. आत्माने
भेद पाडीने लक्षमां लेवो ते व्यवहार छे, तेना आश्रये राग छे; अने अभेद आत्माने
लक्षमां लेवो ते निश्चय छे, तेना आश्रये निर्विकल्प सम्यक्त्वादि थाय छे. स्वसन्मुख
एकाग्र थईने अभेद थयेली एक समयनी ते पर्याय द्रव्यथी अभिन्न छे, पण द्रव्यनी
जेम ते त्रिकाळ नथी माटे ते कथंचित् भिन्न छे.–आम बंने विवक्षा समजवी जोईए.
द्रव्य अने पर्यायनुं कथंचित् भिन्नपणुं ने कथंचित् अभिन्नपणुं जेम छे तेम जाणतां
पर्यायबुद्धि छूटी जाय छे, ने द्रव्यसन्मुख द्रष्टि जाय छे. द्रव्यसन्मुख थयेली पर्याय पोते
शुद्ध छे, एकसमयनुं तेनुं जे अस्तित्व छे ते स्वयं पोताथी शुद्ध छे; द्रव्यथी अनालिढ छे
ते अपेक्षाए आ शुद्धपर्यायने (अलिंगग्रहणना २० मा बोलमां) आत्मा कह्यो केमके
आत्मा ते पर्यायमां अभेदपणे ते समये परिणम्यो छे, माटे ते शुद्धपर्यायने आत्मा
कह्यो. अलिंगग्रहणना वीस अर्थमां आचार्यदेवे अलौकिक वात करी छे.