: ३० : आत्मधर्म : भादरवो : २४९६
ज तेने ओळखे छे, अज्ञानी तेने ओळखतो नथी, एटले उपादेय क््यांथी करे माटे कह्युं
छे के सम्यग्द्रष्टि ज तेने उपादेय करे छे. पोताना आवा शुद्धपरमात्मा सिवाय
सम्यग्द्रष्टिने बीजुं कांई उपादेय नथी. आवा शुद्धद्रव्यने ध्येय करतां सम्यग्दर्शनादि प्रगटे
छे. ए सिवाय बीजी रीते त्रणकाळ त्रणलोकमां सम्यग्दर्शनादि थतां नथी. आत्मा ज्यारे
पोताना शुद्ध स्वभावनी सन्मुख थयो त्यारे तेने अमृतनुं उत्तममां उत्तम चोघडीयुं छे.
अंतरमां आनंदनो अनुभव थाय–एना जेवुं मंगल चोघडीयुं बीजुं कोई नथी.
कोई कहे के अत्यारे जे कलास (शिक्षणवर्ग) चाले छे तेमां आ कया कलासनी
वात छे? तो कहे छे के आत्माना कलासनी आ वात छे. आत्मा सौथी उत्तम छे, ते जेने
समजवो होय तेने माटे आ वात छे. आने धर्मनो पहेलो कलास कहो के ऊंचामां ऊंचो
कलास कहो; पण सत्य स्वरूप समजवुं होय तेणे आ समजवुं पडशे.
श्री गुरुए आत्मानुं आवुं स्वरूप समजाव्युं, ने शिष्य गुरुगमथी आत्मानुं
आवुं स्वरूप समज्यो, त्यारे विनयथी ते कहे छे के अहो! श्रीगुरुनो महान उपकार
थयो, श्रीगुरुए ज मने आवो आत्म समजाव्यो. आ रीते धर्मात्मा–सत्पुरुषो उपकारनुं
ज्ञान भूलता नथी–‘न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति!’ छतां ते जाणे छे अने
श्रीगुरुए पण एम ज समजाव्युं छे के पर तरफनो आ विकल्प छे ते आत्मा नथी,
विकल्प तरफनुं जे ज्ञान छे तेटलो पण खरेखर आत्मा नथी.–अंतर्मुख थईने पोते
आवो आत्मा समज्यो त्यारे श्रीगुरुनो उपकार थयो.–पण ‘समज्या वण उपकार
शो?’
अनुभवतां तो विकल्पोनो ज अनुभव थाय छे ने ते विकल्पना अनुभवमां अटकवुं ते
मिथ्यात्व छे; शुद्धआत्माना एकपणानो अनुभव ते सम्यग्दर्शन छे. साचा देव–गुरु–
शास्त्र तरफना बहुमान वगेरेनो भाव ते शुभराग छे, ते शुभराग पोते मिथ्यात्व
नथी, पण ते शुभरागने जो धर्म माने, के तेने मोक्षनुं साधन माने, तो मिथ्यात्व थाय
छे. उदयभाव कदि मोक्षनुं कारण थाय नहीं, औपशमिकादि त्रणभावो–के जे
शुद्धआत्माना आश्रये ज प्रगटे छे–ते मोक्षनुं कारण छे; ने जे पारिणामिक स्वभाव छे ते
तो बंध–मोक्ष वगरनो छे; बंधन थवुं ने मुक्त थवुं ते पर्यायमां छे, त्रिकाळ स्वभावने
बंधन–मोक्ष थवापणुं नथी.
उपशमादि त्रण भावो मोक्षमार्ग छे, पण शुद्धआत्मानी सन्मुख थईने
शुद्धोपयोग थया वगर ते भाव प्रगट थाय नहि. स्वसन्मुख निजवेपारने शुद्धोपयोग