पूर्वविदेहमां अग्निवेग–राजकुमार थयो, मुनि थयो अने अजगर तेने खाई गयो; अने
त्यांथी सोळमा स्वर्गमां गयो, ने हवे पश्चिम–विदेहक्षेत्रमां जन्मीने चक्रवर्ती थाय छे तेनुं
आ वर्णन छे.
बिराजे छे; हजारो केवळी भगवंतो अने लाखो मुनिवरो त्यां सदाय विचरे छे. धन्य छे
ते देशने–के ज्यां धर्मी जीवोनां टोळेटोळां वसे छे, ने जैनधर्मनो जयजयकार वर्ते छे.
चंद्र, देवविमान, अने भरेलुं सरोवर–ए पांच स्वप्ननी वात तेणे राजाने करी, अने
पूछ्युं के हे महाराज! आ पांच स्वप्ननुं फळ शुं छे?
पारसनाथ भगवाननो जीव! ते स्वर्गमांथी अहीं अवतर्यो छे. राजाए पुत्र जन्मनो
मोटो उत्सव कर्यो. नानकडो राजकुमार बालचेष्टाथी सौने आनंद करावतो हतो...भले
नानकडो–पण महान आत्माने जाणनारो हतो; ते क्यारेक आत्मानी मधुरी वातो करतो,
ते सांभळीने घणा जीवोने धर्मनी प्रेरणा जागती; क्यारेक तो एकांतमां ध्यान धरीने
चैतन्यना चिंतनमां बेसतो–जाणे कोई नानकडा मुनि बेठा होय!
गुणरत्नोनो भंडार हतो. युवान थतां तेनो राज्याभिषेक थयो. एकवार उत्तम
पुण्योदयथी धर्मचक्रवर्ती तीर्थंकर तेना देशमां पधार्या, अने ते ज वखते तेना
राज्यभंडारमां चक्ररत्न उत्पन्न थयुं.–पुण्य करतां धर्म श्रेष्ठ छे एम समजनार ते
राजकुमारे पहेलां तो धर्मचक्रीना दरबारमां जईने तीर्थंकरदेवनुं पूजन कर्युं, अने पछी
सुदर्शनचक्रनो उत्सव कर्यो. ते सुदर्शनचक्रनुं एवुं सामर्थ्य के जे दुश्मन