Atmadharma magazine - Ank 324
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : आसो : २४९६
ने आनंदसहित सम्यग्दर्शन पाम्यो, पछी सर्पदंशथी मरीने स्वर्गमां गयो, पछी
पूर्वविदेहमां अग्निवेग–राजकुमार थयो, मुनि थयो अने अजगर तेने खाई गयो; अने
त्यांथी सोळमा स्वर्गमां गयो, ने हवे पश्चिम–विदेहक्षेत्रमां जन्मीने चक्रवर्ती थाय छे तेनुं
आ वर्णन छे.
जेमां आपणे रहीए छीए तेनुं नाम जंबुद्विप छे; आ जंबुद्विपमां वच्चे मेरूपर्वत
छे, तेनी पश्चिमदिशाना विदेहक्षेत्रमां बाहु अने सुबाहु नामना तीर्थंकर भगवंतो कायम
बिराजे छे; हजारो केवळी भगवंतो अने लाखो मुनिवरो त्यां सदाय विचरे छे. धन्य छे
ते देशने–के ज्यां धर्मी जीवोनां टोळेटोळां वसे छे, ने जैनधर्मनो जयजयकार वर्ते छे.
ते सुंदर देशमां अश्वपुरनगरना राजानुं नाम वज्रवीर्य अने राणीनुं नाम
विजयादेवी. एकवार राणीए आनंदकारी पांच मंगल स्वप्न देख्या,–मेरूपर्वत, सूर्य,
चंद्र, देवविमान, अने भरेलुं सरोवर–ए पांच स्वप्ननी वात तेणे राजाने करी, अने
पूछ्युं के हे महाराज! आ पांच स्वप्ननुं फळ शुं छे?
राजाए कह्युं के तेना फळमां तने एक उत्तम पुत्र अवतरशे. अने ते चक्रवर्ती
थशे.
राणी ते सांभळीने प्रसन्न थई अने पंचपरमेष्ठीनां गुणगान करवा लागी.
थोडा वखतमां तेने एक पुत्रनो जन्म थयो, एनुं नाम वज्रनाभि. आ ज आपणा
पारसनाथ भगवाननो जीव! ते स्वर्गमांथी अहीं अवतर्यो छे. राजाए पुत्र जन्मनो
मोटो उत्सव कर्यो. नानकडो राजकुमार बालचेष्टाथी सौने आनंद करावतो हतो...भले
नानकडो–पण महान आत्माने जाणनारो हतो; ते क्यारेक आत्मानी मधुरी वातो करतो,
ते सांभळीने घणा जीवोने धर्मनी प्रेरणा जागती; क्यारेक तो एकांतमां ध्यान धरीने
चैतन्यना चिंतनमां बेसतो–जाणे कोई नानकडा मुनि बेठा होय!
वज्रनाभि जेम जेम मोटो थतो गयो तेम तेम अनेक जातनी विद्याओ पण तेने
खीलवा लागी. ते बुद्धिसंपन्न कुमार न्याय–नीतिना मार्गे चालनारो हतो; अनेक
गुणरत्नोनो भंडार हतो. युवान थतां तेनो राज्याभिषेक थयो. एकवार उत्तम
पुण्योदयथी धर्मचक्रवर्ती तीर्थंकर तेना देशमां पधार्या, अने ते ज वखते तेना
राज्यभंडारमां चक्ररत्न उत्पन्न थयुं.–पुण्य करतां धर्म श्रेष्ठ छे एम समजनार ते
राजकुमारे पहेलां तो धर्मचक्रीना दरबारमां जईने तीर्थंकरदेवनुं पूजन कर्युं, अने पछी
सुदर्शनचक्रनो उत्सव कर्यो. ते सुदर्शनचक्रनुं एवुं सामर्थ्य के जे दुश्मन