Atmadharma magazine - Ank 324
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९६ आत्मधर्म : ९ :
–सर्व परिग्रह छोडी दीधो, अने कषायोने पण छोडीने अंतरना एकत्वस्वरूपने ध्याववा
लाग्या: मारो आत्मा सर्व परभावोथी जुदो छे, हुं एकलो छुं, ज्ञान ने सुखथी परिपूर्ण
छुं आम निजात्माने ध्याववा लाग्या. अग्निवेग–मुनिराज तो आ प्रमाणे आत्माना
ज्ञान–ध्यानपूर्वक वन–जंगलमां विचरी रह्या छे ने मोक्षने साधी रह्या छे.–एवामां एक
बनाव बन्यो.
पूर्वभवनो कमठ के जे नरकमां गयो हतो ने त्यांथी नीकळीने मोटो अजगर
थयो हतो, ते अजगर पण आ विदेहक्षेत्रमां, ने आ वनमां ज रहेतो हतो, शिकारनी
शोधमां ते ज्यां–त्यां भटकी रह्यो हतो. मोटो अजगर मोढुं फाडे त्यां तो जाणे भोंयरुं
होय–एवुं देखाय. जंगलना केटलाय पशुओने ते आखेआखा मोढामां गळी जतो हतो.
फूंफाडा मारतो ते अजगर अहीं आवी पहोंच्यो, अग्निवेग–मुनिराजने देखीने तेमना
तरफ दोड्यो......अरेरे, क्षमाधारी मुनिराजने देखीने पण अजगरनो क्रोध दूर न थयो;
शांतरसमां झूलता मुनिराजने देखीने पण ए अजगरनुं झेर न ऊतर्युं...ते तो क्रोधपूर्वक
मोढुं फाडीने आखेआखा मुनिराजने पेटमां ऊतारी गयो. अजगरना पेटमां पण
मुनिराजे आत्माना ध्यानपूर्वक समाधिमरण कर्युं, ने ते सोळमा स्वर्गमां गया. जुओ
तो खरा, एनी क्षमा! अजगर खाई गयो तोपण तेना उपर क्रोध न कर्यो, पोते
पोताना आत्मानी साधनामां ज रह्या. क्रोधमां तो दुःख छे, आत्मानी साधनामां ज
परम शांति छे. आवा शांत भावथी तेमणे समाधिमरण कर्युं.
[] सोळमा स्वर्गनो देव अने छठ्ठी नरकनो नारकी
मुनिराज तो शांतभावथी समाधिमरण करीने सोळमां स्वर्गमां गया, अने
अजगर क्रोधभावने लीधे पाछो छठ्ठी नरकमां जईने पड्यो ने महादुःखी थयो. बंनेनुं
आयुष्य २२ सागरनुं हतुं. एक वखतना बे सगा भाई, तेमांथी एक तो २२ सागर
सुधी स्वर्गनां सुख भोगवीने, अने बीजो २२ सागर सुधी नरकनां दुःख वेठीने, त्यांथी
बंने जीवो मनुष्यलोकमां आव्या,–तेमांथी एक तो चक्रवर्ती थयो, ने बीजो शिकारी भील
थयो. तेनी कथा हवेना प्रकरणमां आप वांचशो.
[] वज्रनाभि–चक्रवर्ती अने शिकारी भील
तेवीसमां तीर्थंकर पारसनाथ भगवानना पूर्वभवोनुं वर्णन आपणे वांची रह्या
छीए. मरुभूति–मंत्रीना भवमां तेना भाई कमठे तेने मारी नांख्यो, त्यांथी ते हाथी
थयो