Atmadharma magazine - Ank 324
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 14 of 52

background image
: १२ : आत्मधर्म : आसो : २४९६
करवा गया अने तेमने देखतां ज तेनी आंखो आनंदथी ऊभराई गई.–धन्य
रत्नत्रयधारी मुनिराज! आपनां वीतरागी त्रण रत्नो पासे आ चक्रवर्तीनां चौद रत्नो
साव तुच्छ छे. आम अत्यंत भक्तिपूर्वक मुनिराजने त्रण प्रदक्षिणा करी, तेमने वंदन
कर्युं तथा स्तुति अने पूजा करी; पछी आत्माना हितनो उपदेश सांभळवानी जिज्ञासा
प्रगट करी.
त्यारे मुनिराजे तेमने मोक्षमार्गनो अलौकिक उपदेश आप्यो; सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्रनो वीतरागभाव समजाव्यो, अने मोक्षने माटे आवो वीतरागभाव ज कर्तव्य
छे–एम बताव्युं. हे जीव! आ संसारदुःखथी जो तुं छूटवा चाहतो हो तो आवी
चारित्रदशाने अंगीकार कर. राग आत्मानो स्वभाव नथी, राग तो दुःख छे; तेथी
क्यांय पण जराय राग न करतां, वीतराग थईने भव्य जीव भवसागरने तरे छे. हे
राजा! तुं पण आवा वीतराग धर्मने साधवा माटे तत्पर था. तने आत्मानुं भान तो छे
ने हवे थोडा ज भव बाकी छे, पछी तुं तीर्थंकर थईने मोक्ष पामीश.
मुनिराजनो आवो वीतराग उपदेश सांभळीने चक्रवर्ती राजा घणा प्रसन्न थया,
ने तेमने पण उत्तम वैराग्य भावनाओ जागी. शरीर अने भोगोथी तेनुं मन उदास
थयुं ने धर्ममां तेनो उत्साह घणो वधी गयो. तेणे अत्यंत विनयपूर्वक मुनिराजनी पासे
मुनिदीक्षानी प्रार्थना करी.
हे प्रभो! आपना उपदेशथी मारुं मन आ संसारथी अत्यंत उदास थयुं छे,
परभावोथी विरक्त थईने हवे निजस्वरूपमां लीन थवा मारो आत्मा तत्पर थयो छे; हे
देव! आ जगतमां मारो शुद्धआत्मा ज मारे माटे ध्रुव छे, शरीरादि समस्त संयोगो
अध्रुव छे, ते कोई मने शरणरूप नथी, समस्त परद्रव्यो अने परभावोथी अत्यंत जुदो,
ने ज्ञान–दर्शनथी परिपूर्ण मारो आत्मा एक छे–एम में जाण्युं छे. आनंदमय मारो
आत्मा ज पवित्र छे, शरीर अने रागादि आस्रवो तो अशुचीना भंडार छे. ते
अज्ञानमय आस्रवोने लीधे में संसारनी चार गतिमां भव करी करीने खूब दुःख
भोगव्यां. देवलोकमांय रागद्वेषथी दुःख थयो, मनुष्यमां पण ईष्टनो वियोग, अनिष्टनो
संयोग–एवा प्रसंगथी आर्तध्यान–रौद्रध्यान करीने दुःख थयो; क्यारेक पुत्र के भाई पण
वेरी थया, क्यारेक शरीरमां रोग–पीडा थई, तो क्यारेक मासिक पीडाथी दुःखी थयो,
तिर्यंच अने नरकना अवतारमां जे भयंकर दुःखो जीवे मोहथी अनंतवार भोगव्या–
तेनी तो शी वात? प्रभो! आ