Atmadharma magazine - Ank 324
(Year 27 - Vir Nirvana Samvat 2496, A.D. 1970)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : आसो : २४९६
आजे पण आत्मध्यान थई शके छे
ध्यान नथी तो धर्म नथी
(अष्टप्राभृत–मोक्षप्राभृतनां प्रवचनोमांथी)
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र आत्माना ध्यान वडे ज प्रगटे छे, ध्यान वगर धर्म
होतो नथी के मोक्षमार्ग थतो नथी.
प्रश्न:– आ काळे आत्मानुं ध्यान होय?
–हा, आ काळे पण आत्मानुं ध्यान थाय छे. आत्माना ध्यानमां ज
सम्यक्दर्शन प्रगटे छे. आत्माना ध्याननी ना पाडवी ते सम्यग्दर्शननी ज
ना पाडवा जेवुं छे. आत्माना ध्यानने जेओ नथी स्वीकारता तेओ
सम्यग्दर्शनरहित छे, मिथ्याद्रष्टि छे; आत्मानी शुद्धि प्रगट करवानी
लायकात तेनामां नथी.
ते मिथ्याद्रष्टिजीव संसारसुखमां ज लीन वर्ते छे, एटले के रागमां ज लीन वर्ते
छे, तेथी राग वगरना आत्माना अतीन्द्रिय सुखनी के ध्याननी तेने खबर नथी.
रागमां ज लीन थईने शुभरागने ज धर्म मानी बेठा छे. तेमने राग वगरना
शुद्धोपयोगरूप ध्यान क्यांथी देखाय? अरे भाई! तारो आत्मा अत्यारे छे के नहीं?
आत्मा छे तो तेनुं ध्यान पण थई शके छे.
अरे जीव! आत्मानुं ध्यान नथी तो तुं सम्यग्दर्शन कई रीते प्रगट करीश? ने
सम्यग्दर्शन वगर व्रत–तप–साधुपणुं तुं क्यांथी लावीश? आ काळे मुनिपणुं तो छे ने
आत्मानुं ध्यान नथी–ए केवी वात? आत्मानुं ध्यान नथी तो मुनिपणुं क्यांथी आव्युं?
एकला शुभरागथी सम्यग्दर्शन के साधुपणुं कदी थतुं नथी.
ध्यान नथी–एम कहेनारने सम्यग्दर्शन ज नथी; एटले जेम अभव्यने कदी
शुद्धता प्रगटती नथी तेम तेने पण आत्माना ध्यान वगर कदी शुद्धता प्रगटती नथी.
त्रणेकाळे शुद्धआत्माना निर्विकल्प ध्यान वडे ज मोक्षमार्गनी शरूआत थाय छे; तेना
वगर मोक्षमार्गनो अंश पण होतो नथी. पंचमकाळनुं बहानुं काढीने मूढजीव