: आसो : २४९६ आत्मधर्म : ४१ :
पत्र लखे छे के– दरमहिने आत्मधर्म वांची आनंद थाय छे. आ वखते अंक
मळ्यो त्यारे, आ क्षणभंगुर देहनी पर्यायमां अनेरो परिवर्तन हतो! (–कच्छी
भाषा छे.) जड देहथी भिन्न ज्ञानपिंडलो एवा आत्मानो जे बोध गुरुदेवे
आप्यो छे तेनो वारंवार विचार आवे छे. आ जड शरीर पारकुं द्रव्य छे ते तारुं
नथी. आत्मधर्मनुं ३२२ मुं अंक खूब थनगनाट करावी गयुं...ते वांचतां रोम
रोम खडा थई जाय छे. द्रव्यमां सूप्त पर्यायो जागृती पामे छे...पराङ्मुख भावो
दुःखरूप लागे छे ने आनंदधाम आत्मामां झणझणाट प्रगटाववानो पुरुषार्थ
करवानुं अद्भुत सीग्नल (निशान) मळे छे. अहो, गुरुदेवनो अनंत उपकार छे.
• खैरागढ (मध्यप्रदेश) मां जैन–पाठशाळा चालु थई छे, ने त्रीस जेटला बाळको
उत्साहथी भणे छे. दूरदूरना नानां गामोमां पण पाठशाळा चालु थाय छे–तो
सौराष्ट्र क्यारे जागशे?
• ३६ वर्ष पहेलांनी वात छे: राजकोटना एक भाई जेओ ते जमानामां
राजकोटमां स्था. जैनशाळाना शिक्षक हता, तेओ हालमां कलकत्ताथी लखे छे के
ते वखते पू. गुरुदेवश्रीना प्रवचनमां हाजरी आपवाने कारणे मारो खुलासो
मागवामां आव्यो हतो ने मारे शिक्षकमांथी राजीनामुं आपवुं पडेल हतुं! (क्यां
ए जमानो! ने क्यां आजनी परिस्थिति!) गुरुदेव तो सुवर्णपुरीमां बेठाबेठा
आत्माना रत्नोनो वेपार करी रह्या छे. आत्मा आ देहथी जुदो ज छे–ते वात
तो गुरुदेवे ज बतावी. (–जे शिक्षके पोते ज देहथी भिन्न आत्मानी वात जाणी
न हती ते शिक्षक पासेथी विद्यार्थीने जैनधर्मनुं साचुं ज्ञान क्यांथी मळे? अने जे
समाजना शिक्षक देहथी भिन्न आत्मानी वात सांभळवा पण न जई शके–ते
समाजमां आत्मिकज्ञाननो प्रचार तो क््यांथी होय?) विशेषमां तेओ लखे छे के
गुरुदेव तो पंचमकाळनुं कल्पवृक्ष छे; तेनो जे लाभ लेशे ने आत्माने ओळखशे
तेणे एकाद बे भव बाद माताने पेटे अवतार नहीं लेवो पडे. माटे जल्दी
चालो!–क्यां? सोनगढ! भले कोई रेतीमांथी सोनुं बनावे, पण आ तो जड
देहथी आत्माने जुदो पाडीने परमात्मा बनावे छे. आवो सुवर्ण अवसर चुकशो
तो पस्तावानो कोई पार नहीं रहे. अंतरमां चैतन्यनो भरपूर खजानो छे तेनी
चावी गुरुदेव बतावे छे. ए चैतन्य खजानाना दर्शन थतां तेनी पासे जगतनी
कोई चीज के कोई वैभव कांई वीसातमां नथी. गुरुदेवनो घणो ज असीम
उपकार छे.
(– शां. के. शाह)