: आसो : २४९६ आत्मधर्म : ४३ :
पाठशाळाना बाळकोने माटे खास उपयोगी छे, तेथी तेमां वहेंचवानो विचार
• हम है जैन.....जैन....जैन......लखावो.....जैन.....जैन.....जैन
ई. स. १९७१ (फेब्रुआरी) ना वस्तीपत्रकमां “जैन” लखावो...अने गामडे–
गामडे घरेघरे ए संदेह पहोंचाडो के वस्तीगणतरी वखते दशमा खानामां
‘तमारो धर्म क््यो?’ “जैन” एम लखावे. आपणे जैन होवा छतां, सरकारी
नोंधमां आपणी गणतरी बीजामां थई जाय–ते कोई प्रकारे योग्य नथी...माटे
जैनो जागो...ने जैन लखावो.–
कौनसा धर्म हमारा है?.....जैन.....जैन.....जैन.
आत्मिकधर्म हमारा है......जैन.....जैन.....जैन.
जिनवरदेवना भक्त अमे.....जैन....जैन....जैन.
भारतमां छे एक करोड?.....जैन.....जैन.....जैन.
वस्तीपत्रकमां शुं लखावशो?....जैन....जैन...जैन.
–परंतु, सावधान! मात्र जैन लखावीने संतुष्ट न थई जशो. जैनत्वने शोभे
एवा उत्तम विचार ने उत्तम आचार पण घरघरमां प्रसरे ते वधु जरूरी छे.
सरकारी चोपडे कदाच जैन न नोंधायुं होय पण जो उत्तम आचार–विचारथी
जैनत्वने शोभे एवुं आपणुं जीवन छे तो तेनो आपणने लाभ ज छे. आपणे
सरकारी कागळमां नहीं पण आपणा आत्मामां जैन बनवानुं छे. अंदरोअंदरना
कलेश छोडीने, वीतरागताप्रेरक विचारो अने आचारोने ओळखीने तेनुं पालन
करवानुं छे...घरघरमां तेनो प्रचार करवानो छे.