: ४ : आत्मधर्म : आसो : २४९६
मनुष्य थई, चारित्रदशामां शुक्लध्यान प्रगट करीने मोक्ष पामे छे. अत्यारे धर्मध्याननो
पण जे निषेध करे छे ते मोक्षमार्गनो ज निषेध करे छे अने आत्मानी शुद्धीनो ज निषेध
करे छे. भाई! तारा आत्मामां उपयोगने जोड! जेम परविषयोने ध्येय बनावीने तेमां
उपयोगने एकाग्र करे छे तेम तारा आत्माने अंतरमां ध्येय बनावी स्वविषयमां
उपयोगने एकाग्र कर, एटले तने धर्मध्यान थशे. आवा धर्मध्यानथी ज सम्यग्दर्शन–
ज्ञान–चारित्ररूप शुद्धता प्रगटे छे, ते धर्म छे, ते मोक्षमार्ग छे. हे भाई! आवा
मोक्षमार्गने अत्यारे शरू करीश तो एकाद भवमां पूरुं थई जशे. पण अत्यारे तेनो
निषेध करीश ने विषयोमां ज प्रवर्तीश तो तने मोक्षमार्ग क्यांथी थशे? चोथाकाळमां
पण कांई आत्मामां उपयोगनी एकाग्रता वगर मोक्षमार्ग थतो न हतो, त्यारे पण
आत्मामां उपयोगनी एकाग्रतारूप धर्मध्यान वडे ज मोक्षमार्ग थतो हतो, ने अत्यारे
पण एवा धर्मध्यान वडे मोक्षमार्ग थाय छे. कुंदकुंदाचार्यदेव–अमृतचंद्राचार्यदेव वगेरे कहे
छे के आवो मोक्षमार्ग अमे अमारा आत्मामां अंगीकार कर्यो छे, ने तमे पण तेने
अंगीकार करो.....आजे ज अंगीकार करो.
अनाज साथेनुं घास!
मुमुक्षुनी भूमिकामां शुभभाव
मुमुक्षु–जीवनमां केटली सज्जनता होय, केटली नैतिकता होय,
परस्पर केटलो प्रेम होय? ते संबंधी श्रावण मासना प्रवचनमां
गुरुदेवे कह्युं के:–मुमुक्षु एटले जेने मोक्षनी जिज्ञासा होय, एवा
मोक्षना अभिलाषीने लौकिक नीति–सज्जनता वगेरे होय, ए तो
साधारण छे. जेने सर्वे परभाव वगरना आत्माने साधवो छे तेने,
तीव्र अभक्ष–चोरी–अन्याय वगेरे स्थूळ पापभावो तो होय ज केम?
जेमां विकल्पनो एक अंश पण पालवतो नथी एवा आत्माना
साधकने तीव्र पापभावो स्वप्नेय होय नहीं. मोक्षनी साधनामां वच्चे
आवा शुभभाव तो सहज छे,–ए तो अनाज साथे ऊगेला घास
जेवा छे. धर्मीनी द्रष्टि ने धर्मीनो प्रेम आत्मानो आनंद साधवामां
तत्पर छे, वच्चेना घास जेवा शुभरागनोय प्रेम तेने नथी, तो पछी
अशुभनी तो शी वात!! आ तो वीतरागभावनो अलौकिक मार्ग छे.