Atmadharma magazine - Ank 325
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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३२प
णमो अरिहंताणं।
णमो सिद्धाणं।
णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं।
णमो लोए सव्वसाहूणं।
अहो, जगतमां सर्वोत्कृष्ट मंगलरूप पंचपरमेष्ठी
भगवंतो! आपनी उत्पत्ति आत्मामांथी ज थई छे, तेथी
आप स्वयंभू छो. आपना स्वरूपनुं चिंतन करतां मारुं
आत्मरूप देखाय छे, ने मारा आत्मामां ज पंचपरमेष्ठीनो
वास छे–एम स्वसन्मुखवृत्ति वळे छे. आ रीते
स्वसन्मुखवृत्तिना हेतुभूत एवा हे भगवंतो! आपना
ध्यानवडे मारुं आजनुं प्रभात हुं मंगलरूप बनावुं छुं....ने
आपने ओळखावनारा संतोने नमस्कार करुं छुं.
तंत्री : पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक : ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९७ कारतक (लवाजम : चार रूपिया) वर्ष : २८ अंक १