Atmadharma magazine - Ank 325
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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उपकार श्रीगुरु आपनो
जेमना प्रतापे आपणुं आ
‘आत्मधर्म’ हजारो मुमुक्षुओनो प्रेम झीलतुं
आजे २७ वर्ष पूरा करीने २८ मा वर्षमां
आगेकदम करी रह्युं ते पूज्य श्री कहानगुरुनो
परम उपकार छे.
हे गुरुदेव! आत्मानुं सत्य स्वरूप
शुं छे, तेनी मुक्तिनो मार्ग केवो छे, अने ए
वीतरागमार्गमां साचा देव–गुरु–शास्त्र केवां छे?
ते बधुंय आपे ज अमने समजाव्युं छे. आपना
ज प्रतापे अमने जिनमार्गनी प्राप्ति थई छे.
आपना ज प्रतापे हजारो मुमुक्षुजीवो जाग्या छे ने पोतानुं आत्महित साधवा उद्यमी
बनी रह्या छे. अमारा सौना हृदयमां आपना पवित्र उपकारनुं झरणुं वही रह्युं छे–आ
भवना अंत सुधी ज नहीं पण आवता भवमांय अमारा आत्मप्रदेशोनी वीणा
आपना उपकारना रणकार वडे झणझण्या करशे.
गुरुदेव! अमे मात्र आपनो उपकार ज मानीने नहीं अटकीए,
आत्मानो जे मार्ग बतावीने आपे उपकार कर्यो छे ते मार्गने अनुसरीने आपनी ज
साथे आनंदनगरीमां आवीशुं.
अहा, आ बाळकना जीवनमां २८ वर्षथी आप आत्महितनी जे प्रेरणा ने
उत्साह आपी रह्या छो, मंगल आशीषपूर्वक आत्मसाधनाना मार्गमां जोडी रह्या छो ते
संबंधी आपना प्रत्येनी भक्ति कई रीते व्यक्त करुं? आ आत्माना प्रदेशोमां
कोतरायेलो आपनो अने सर्वे संतोनो पवित्र उपकार मने रत्नत्रयरूप बनावो ए ज
एक बेसता वर्षनी बोणीरूपे मंगल प्रार्थना छे.
–आपनो बाळक : हरि.