Atmadharma magazine - Ank 325
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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दीवाळी अंक २४९७ आत्मधर्म : १ :
वार्षिक वीर सं. २४९७
लवाजम कारतक
चार रूपिया
1970 NOV.
* वर्ष २८ : अंक १ *
* मंगल दीवाळी...
ने अपूर्व बेसतुं वर्ष *

हे मोक्षपुरीना पथिक! अपूर्व आत्मस्वभाव सांभळीने हवे तो तुं तेनी भावना
वडे सम्यक्त्वादि भावो प्रगट कर......जेथी तारा आत्मामां मंगल दीवाळी प्रगटे, अने
अपूर्व आनंदरूप नवुं वर्ष बेसे.
शिवपुरीना पंथमां सम्यक्त्वादि भावनी प्रधानता छे; एवा शिवपुरीना मार्गने
जाणीने, हे मोक्षना पथिक! तुं जिनभावना वडे सम्यक्त्वादि शुद्धभावने प्रगट कर, एम
उपदेश करे छे–
जाणहि भावं पढमं किं ते लिंगेण भावरहिएण।
पंथिय सिवपुरीपंथं जिणउवइठ्ठं पयत्तेण।।६।।
‘भाव’ मुख्य छे मार्गमां, वणभाव लिंगथी साध्य ना;
जिनकथित शिवपुरी पंथ आ, हे पथिक! यत्नथी जाण तुं. (६)
आचार्यदेव कहे छे के हे मोक्षमार्गना पथिक! हे साधक! मोक्षना मार्गमां तुं
भावनी मुख्यता जाण; सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे भाव तेना वडे ज मोक्षमार्ग
सधाय छे, माटे तेने तुं प्रथम जाण. आवा भाव वगरना लिंगथी तने शुं साध्य छे?
सम्यग्दर्शनादि भावशुद्धि वगर द्रव्यलिंग अनंतवार धारण कर्या ने पंचमहाव्रतादि
पाळ्‌या पण तारा हाथमां मोक्षमार्ग न आव्यो. माटे हे भव्य! जिनवरभगवाने कहेला
मोक्षना मार्गने तुं प्रयत्न वडे जाण. भगवाने कहेलो शिवपुरीनो पंथ सम्यग्दर्शनादि
भाव वडे ज सधाय छे, भाव वगरना द्रव्यलिंगथी ते सधातो नथी. माटे हे पथिक! जो
तुं शिवपुरीना पंथने चाहतो हो तो प्रयत्न