Atmadharma magazine - Ank 325
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म दीवाळी अंक २४९७
* धर्म प्रेमी प्यारा नानकडा बंधुओने– *
वहाला बंधुओ! ‘अभिनंदन! ’ साथे दिवाळीनिमित्ते तमने आ टूंको पत्र लखुं
अहा, केवो सरस छे महावीरनो मार्ग! केवो मजानो छे आपणो जैनधर्म?
वहाला बंधुओ! खूबखूब जागृतिपूर्वक तमे धर्ममां रस लेजो. आपणा
आपणा जैनधर्ममां नानी नानी उमरमां पण घणाय महापुरुषो थया छे.
भरतचक्रीना नानकडा राजकुमारो आत्माने साधता हता, कुंदकुंदस्वामीए ११ वर्षे
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगट कर्या हता, चंदनबाळा वगेरे बहेनोए पण नानी
वयथी ज वैरागी थईने आत्मानुं कल्याण कर्युं हतुं. आपणे ए महात्माओना जीवननुं
उदाहरण लईने आपणा आत्मानी उन्नत्ति करवानी छे.