Atmadharma magazine - Ank 325
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 40 of 45

background image
दीवाळी अंक २४९७ आत्मधर्म : ३७ :
आचार्यदेव कहे छे के हे भव्य जीवो! आत्माना धर्मनुं आवुं स्वरूप जाणीने तमे
परम बहुमानथी तेनुं सेवन करो. जिनेश्वर भगवाननुं शासन पामीने आवा
वीतरागभावरूप धर्मने तमे सेवो. आत्माना धर्मनुं आवुं स्वरूप जैनधर्म ज बतावे छे;
तेनी प्राप्ति बहु दुर्लभ छे. महाभाग्ये आवो जैनधर्म प्राप्त थयो छे तो हवे आत्मानी
ओळखाण करो ने श्रद्धा–ज्ञान–चारित्ररूप अपूर्व बोधि प्रगट करो. जेणे आत्माना
सम्यक् स्वभावनो अनुभव करीने मोहनो नाश कर्यो ने सम्यक्त्वादि वीतरागीभाव
प्रगट कर्यो. ते जीव सर्वज्ञपरमात्माना परिवारमां आव्यो. हे जीव! तुं पण आत्माने
ओळखीने परमात्माना परिवारमां आवी जा.
(भावप्राभृत–प्रवचन)
आप आ बधुं मेळववा चाहो छो?
पू. गुरुदेवना प्रवचनोनी ताजी प्रसादी, वीतरागी
जिनशास्त्रोनी अवनवी वातो, तीर्थंकरादि महापुरुषोनां
जीवनना उत्तम प्रसंगो, आत्माने ज्ञान अने वैराग्यनी प्रेरणा
आपे तेवी चर्चाओ, जैनसमाजना महत्त्वना समाचारो,
अनेक प्रकारे देव–गुरु–शास्त्रनो महिमा तथा प्रचार,
तीर्थयात्रा वगेरे प्रसंगो, अनेक मुमुक्षुओना विचारो, अने
हजारो बाळकोने धर्ममां उत्साह प्रेरनारो बालविभाग,
जिज्ञासुओनी अनेक शंकानुं समाधान, –ए बधुंय आप
एकसाथे मेळववा चाहो छो? ...हा! ... तो आपे ‘आत्मधर्म’
वांचवुं जोईए.
‘आत्मधर्म’ नुं लवाजम चार रूपिया आपे भरी दीधुं?
...... तो धन्यवाद! अने हजी न भर्युं होय तो पहेलुं काम ए
करो......जेथी आत्मधर्म आपने नियमित मळे: आत्मधर्मनुं
वर्ष कारतकमासथी शरू थाय छे. दरमहिनानी पहेली तारीखे
अंक रवाना थाय छे. लवाजम मोकलवानुं सरनामुं :
श्री दि. जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट, सोनगढ (सौराष्ट्र)