Atmadharma magazine - Ank 325
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ४० : आत्मधर्म दीवाळी अंक २४९७
जंबुस्वामीना केवळज्ञानना वारसदार कोई न होवाथी तेओ अंतिम केवळी
कहेवाया.)
देणाथी छूटवानी रीत
एक वेपारीने घणुं देणुं थयुं......कंटाळीने तेणे पेढी बदलीने बीजे गाम पेढी
खोली, पण लेणदारो तो त्यां पण आव्या. पेढीनुं स्थान बदलवाथी कांई देणुं छूटे नहि.
देणाथी छूटवानी रीत तो एक ज छे के कमाणी करवी. कमाणी करे तो देणुं तूटी जाय.
तेम संसारमां रखडतो जीव अज्ञानथी अनेक विध कर्मो बांधे छे, ने कर्मनुं देणुं
ऊभुं करे छे. पछी तेनुं फळ भोगववा टाणे कंटाळीने तेनाथी छूटवा मांगे छे. आ देह
छोडीने बीजा देहमां जउं तो कर्मथी छूटी जईश–एम मूढताथी माने छे. पण भाई!
तारा बांधेला कर्मो तो त्यां पण तारी साथे आवशे ज. देहरूपी दुकान बदलवाथी कांई
कर्मनुं देणुं छूटे नहि. कर्मना देणाथी छूटवानी रीत तो एक ज छे के धर्मनी कमाणी करवी.
धर्मनी कमाणी करतां कर्मनुं देणुं तूटी जाय छे.
* मनःपर्ययज्ञान * परिहारविशुद्धि संयम
* आहारकशरीर * प्रथमोपशम सम्यक्त्व
–उपरनी चारे वस्तुओ केवी सुंदर छे! वाह! एक साथे आ चारे वस्तु मली
जाय तो? –पण सबुर! तेमनामां एक विशेषता एवी छे के ते चार वस्तुओ एक ज
जीवमां एकबीजानी साथे कदी रही शकती नथी; ज्यां एक होय त्यां बीजी कोई होय
नहीं.
जेने मृत्यु ज नथी एने भय शो?
अविनाशी आतमरामनो अनुभव करनारने भय नथी.
विज्ञप्ति
‘नियमसार’ गुजराती घणा वखतथी प्राप्त नथी तेथी ते शास्त्र फरीथी
छपाववानी विचारणा चाले छे. ग्राहक–संख्या ठीक ठीक प्रमाणमां थई जशे तो ज
छपाववानुं नक्की करी शकाशे, माटे प्रत्येक गामना मंडळ अथवा जिज्ञासुने प्रार्थना छे के
तेओ पोतपोतानी आवश्यकता अनुसार ओर्डर शीघ्र लखी मोकले.
–श्री दि. जैन स्वाध्यायमंदिर ट्रस्ट; सोनगढ (सौराष्ट्र)