Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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३२६
आनंदनी प्राप्तिनो अवसर
जैनधर्मने पामीने आनंदनी प्राप्तिनो आ अवसर छे.
हे भाई! चारगतिनां जे अनंत दुःख तमे भोगव्यां तेनाथी
जो छूटवा चाहता हो, अने मोक्षसुखनो अनुभव करवा
चाहता हो तो जिनवरदेवे कहेला वीतराग–विज्ञाननुं सेवन
करो. दुःखथी छूटीने आनंदनी प्राप्तिनो आ अवसर छे.
जीवो दुःखने चाहता नथी, परंतु दुःखनां कारणरूप
मिथ्याभावोनुं दिनरात सेवन करे छे, –तो ए दुःखथी केम छूटे?
अने जीवो सुखने चाहे छे, परंतु सुखना कारणरूप
वीतराग–विज्ञाननुं एकक्षण पण सेवन करता नथी, तो तेने
सुख क््यांथी थाय?
हे जीव! सुखनी प्राप्तिना आ अवसरमां तुं अत्यंत
उत्साहथी वीतराग–विज्ञाननुं सेवन करजे.
* * * * *
तंत्री : पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक : ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९७ मागशर (लवाजम : चार रूपिया) वर्ष २८ : अंक २