Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 32 of 45

background image
:मागशरः२४९७ आत्मधर्म :२९:
जीवन ते जैनशासननो सार छे. ज्ञानमात्र कहेतां परभावोनो निषेध थाय छे पण
स्वधर्मोनो निषेध थतो नथी; स्वधर्मो तो ज्ञाननी साथे स्वयमेव उल्लसे छे.
९–१०, ज्ञानभावनुं स्वकाळथी सत्पणुं; परकाळथी असत्पणुं
आत्मानी ज्ञानपर्याय ज्ञेयपदार्थोने जाणवारूप स्वकाळमां पोताथी परिणमे छे,
ज्ञानपर्याय ते पोतानो स्वकाळ छे; स्वकाळथी ज्ञाननुं सत्पणुं छे. तेने बदले परज्ञेयोनी
पूर्वपर्याय नष्ट थतां तेनी साथे अज्ञानी पोताना ज्ञाननो पण नाश मानी ल्ये छे.
ज्ञेयनी पर्याय ते परकाळ छे, तेनो विनाश थता ज्ञान तो पोताना स्वकाळरूप पर्यायमां
समयेसमये वर्ती रह्युं छे. ज्ञानपर्यायनुं स्वकाळथी सत्पणुं पोताथी छे, काई परज्ञेयथी
तेनुं सत्पणुं नथी, परकाळथी तो ते असत् छे.
परज्ञेयोनुं अवलंबन ते पण खरेखर परकाळ छे; परना अवलंबन वखते ज
मारी ज्ञानपर्याय सत् छे एटले के परज्ञेयथी ज मारी ज्ञानपर्याय थाय छे एम अज्ञानी
माने छे; तेने अनेकान्तवडे समजावे छे के हे भाई! तारुं ज्ञान तारी ज्ञानपर्यायथी
एटले के स्वकाळथी सत् छे, ने परकाळथी ते असत् छे. समयेसमये स्वकाळरूप
पर्यायपणे परिणमे एवुं ज्ञाननुं ज स्वरूप छे, ते पोताथी ज छे. सामे परज्ञेयनुं
परिणमन छे ते परकाळ छे, तेने लीधे कांई अहीं ज्ञाननुं परिणमन नथी. –आम
ज्ञाननुं स्वकाळथी सत्पूर्ण ने परकाळथी असत्पणुं बतावीने अनेकान्त जीवाडे छे.
भाई! तारुं ज्ञान तारा स्वकाळथी जीवतुं छे. तारुं ज्ञान सत् छे ते स्वकाळ वगरनुं
नथी, समयेसमये ज्ञानपर्यायरूप स्वकाळ पोताथी ज छे. आवा अनेकान्त स्वरूप वडे
जैनदर्शन विश्वना एकांत मतोथी जुदुं पडे छे; अहो! आ तो सर्वज्ञदेवे जोयेलुं
वस्तुस्वरूप छे. ते कांई भगवाने बनाव्युं नथी, पण जेम हतुं तेम अतीन्द्रियज्ञानवडे
प्रत्यक्ष जाण्युं छे, ने दिव्यवाणी वडे देखाडयुं छे. ’
एक ज्ञेयनुं अवलंबन छूटयुं तेथी कांई ज्ञाननो नाश थई जतो नथी, ज्ञान
वर्तमान–वर्तमान स्वपर्यायरूप थया करे छे, ते स्वकाळथी ते जीवे छे. ज्ञेयनुं अवलंबन
छूटतां ज्ञान मरी जतुं नथी, ज्ञेयना अवलंबन वगर पोताना स्वभावथी ज ज्ञानस्वरूप
आत्मा ज्ञानपर्यायरूप स्वकाळपणे परिणमे छे, ए ज तेनुं जीवन छे. रागना काळे ज्ञान
रागने जाणवारूप परिणम्युं, तो ते काळे कांई रागना कारणे ज्ञाननुं अस्तित्व नथी;