स्वधर्मोनो निषेध थतो नथी; स्वधर्मो तो ज्ञाननी साथे स्वयमेव उल्लसे छे.
पूर्वपर्याय नष्ट थतां तेनी साथे अज्ञानी पोताना ज्ञाननो पण नाश मानी ल्ये छे.
समयेसमये वर्ती रह्युं छे. ज्ञानपर्यायनुं स्वकाळथी सत्पणुं पोताथी छे, काई परज्ञेयथी
तेनुं सत्पणुं नथी, परकाळथी तो ते असत् छे.
माने छे; तेने अनेकान्तवडे समजावे छे के हे भाई! तारुं ज्ञान तारी ज्ञानपर्यायथी
एटले के स्वकाळथी सत् छे, ने परकाळथी ते असत् छे. समयेसमये स्वकाळरूप
पर्यायपणे परिणमे एवुं ज्ञाननुं ज स्वरूप छे, ते पोताथी ज छे. सामे परज्ञेयनुं
परिणमन छे ते परकाळ छे, तेने लीधे कांई अहीं ज्ञाननुं परिणमन नथी. –आम
भाई! तारुं ज्ञान तारा स्वकाळथी जीवतुं छे. तारुं ज्ञान सत् छे ते स्वकाळ वगरनुं
नथी, समयेसमये ज्ञानपर्यायरूप स्वकाळ पोताथी ज छे. आवा अनेकान्त स्वरूप वडे
जैनदर्शन विश्वना एकांत मतोथी जुदुं पडे छे; अहो! आ तो सर्वज्ञदेवे जोयेलुं
वस्तुस्वरूप छे. ते कांई भगवाने बनाव्युं नथी, पण जेम हतुं तेम अतीन्द्रियज्ञानवडे
प्रत्यक्ष जाण्युं छे, ने दिव्यवाणी वडे देखाडयुं छे. ’
छूटतां ज्ञान मरी जतुं नथी, ज्ञेयना अवलंबन वगर पोताना स्वभावथी ज ज्ञानस्वरूप
रागने जाणवारूप परिणम्युं, तो ते काळे कांई रागना कारणे ज्ञाननुं अस्तित्व नथी;