Atmadharma magazine - Ank 326
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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:२८: आत्मधर्म :मागशरः२४९७
७–८ ज्ञानमय आत्मानुं स्वक्षेत्रथी अस्तित्व; परक्षेत्रथी नास्तित्व
ज्ञाननुं अस्तित्व पोताना असंख्यप्रदेशरूप स्वक्षेत्रमां छे, जेटलुं आत्मानुं
स्वक्षेत्र छे तेमां ज ज्ञाननुं अस्तित्व छे, ज्ञानना स्वक्षेेत्रमां परक्षेत्ररूप ज्ञेयो जणाय
छे, त्यां जाणे के ज्ञान ते परक्षेत्ररूप थई गयुं–एम अज्ञानी माने छे. पण भाई!
तारुं ज्ञान परने जाणे छे तोपण ते पोताना स्वक्षेत्रथी बहार जतुं नथी. बहारमां
दूरदूर परक्षेत्रमां रहेला ज्ञेयने जाणवा छतां ज्ञान कांई पोताथी बहार नीकळीने
त्यां गयुं नथी. ज्ञान तो ज्ञानना स्वक्षेत्रमां ज रह्युं छे. समवसरणनुं क्षेत्र होय त्यां
तेने जाणतां अज्ञानी एवो एकाकार थईने हरख करे छे के जाणे आ क्षेत्रमांथी मारुं
ज्ञान आवशे! अथवा बीजुं कोई क्षेत्र मारा ज्ञानने हणी नांखशे–एम अज्ञानी
माने छे. पण भाई! तारा ज्ञाननी ते परक्षेत्रमां तो नास्ति छे. तारा आत्मक्षेत्रमां
ज तारा ज्ञाननी अस्ति छे ने परक्षेत्रमां नास्ति छे. नास्ति छे एटले तेमांथी तारुं
ज्ञान जराय आवतुं नथी, के तेनाथी तारुं ज्ञान हणातुं नथी. परक्षेत्रथी ज्ञान
थवानुं माने ते तो परनी सामे ज जोया करे, एटले ज्ञाननुं सम्यक्त्वादिरूप जीवन
तेने क््यांथी प्रगटे? पण ज्ञाननुं परक्षेत्रथी नास्तिपणुं समजे ने स्वक्षेत्ररूप
ज्ञानिथी ज अस्तिपणुं जाणे तो स्वसन्मुख द्रष्टिथी सम्यक्त्वादिरूप ज्ञान–जीवन
प्रगटे.
परक्षेत्रे रहेला अनेक ज्ञेयोना आकार ज्ञानमां जणाय छतां ज्ञान ते
परज्ञेयना आकारपणे थयुं नथी; ज्ञानमां ते जणाय छे ते तो स्वक्षेत्रे रहेला ज्ञाननी
तेवी अवस्था छे. अज्ञानी परज्ञेयना आकारने छोडवा माटे तेना ज्ञानने ज छोडी
देवा मांगे छे, जाणे के परक्षेत्रे रहेला ज्ञेयो ज्ञानना क्षेत्रमां घूसी गया होय एम
मानीने ते परज्ञेयने जाणवारूप ज्ञानने पण छोडी देवा मांगे छे, पण भाई! तारा
ज्ञानना स्वक्षेत्रमां कोई परद्रव्य आव्युं नथी, परद्रव्यो तो परक्षेत्रमां छे ने तेनुं जे
ज्ञान थाय छे ते तो तारा स्वक्षेत्रमां ज छे. आम ज्ञाननुं स्वक्षेत्रथी सत्पणुं छे ने
परक्षेत्रथी असत्पणुं छे–एम अनेकान्तवडे तुं जाण; परज्ञेय परक्षेत्रमां छे, ने मारुं
ज्ञान मारा स्वक्षेत्रमां छे–एम भिन्न ज्ञाननो अनुभव कर. –ए ज साचुं जीवन छे.
‘ज्ञानमय हुं छुं’ –एम स्वसन्मुख थईने अनुभव करतां ‘ज्ञानथी विरुद्ध
अन्य वस्तु हुं नथी’ एम परनी नास्ति पण तेमां आवी जाय छे. ज्ञाननुं आवुं
अनेकान्त–