अनेकान्त ज्ञान ते आत्मानुं स्वरूप छे.
परभावो तेनाथी ज्ञान असत् छे एटले के ज्ञान ते परभावोरूपे थतुं नथी. अहो,
ज्ञाननो पोतानो सत्भाव केवो छे. ने परभावोथी तेने भिन्नता कई रीते छे ते
अनेकान्तवडे ज समजाय छे.
परभावरूपे मारुं ज्ञान परिणमतुं नथी एटले तेनाथी नास्तिरूप छे; मारुं ज्ञान
पोते ज आवुं अनेकान्तस्वरूप छे. मारा ज्ञानमां परभावो जणाय भले, पण मारुं
ज्ञान कांई ते परभावरूपे परिणमतुं नथी, एनाथी कांई मारुं जीवन नथी, एने
लीधे ज्ञाननुं अस्तित्व नथी. ज्ञायकभावरूप जे निजभाव छे तेनाथी ज मारुं जीवन
छे, तेमां ज मारुं अस्तित्व छे. ज्ञान पोताना निजभावने कदी छोडतुं नथी ने
परभावने ग्रहतुं नथी–आम अनेकान्त वडे स्वभाव अने परभावनी अत्यंत
भिन्नता जाणीने ज्ञानी परभावोथी भिन्नपणे अने निजस्वभावथी अभिन्नपणे
आत्माने जीवाडे छे–एटले के आत्माने आवा सम्यग्ज्ञानरूप परिणमावे छे. ज्ञानना
परिणमनमां परभावना अंशने पण ते भेळवता नथी; ज्ञानरूपे ज परिणमता थका
मोक्षने साधे छे.
सामान्यज्ञानरूपे जोतां तेने नित्यपणुं छे; अने क्षणेक्षणे पलटती विशेषज्ञानपर्यायरूपे
जोतां तेने अनित्यपणुं छे. आवा बंने धर्मो ज्ञानमां समाय छे–एवुं ज्ञाननुं अनेकान्त
स्वरूप छे.