Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९७ आत्मधर्म : २७ :
पंचपरमेष्ठी भगवंतो आत्माने साधवामां शूरवीर छे ने तेओ
आराधनाना नायक छे........मोक्षमार्गी जीवोना तेओ नेता छे.
* * * * *
‘भाव’ एटले पोताना शुद्धआत्मस्वरूपना श्रद्धा–ज्ञान–चारित्ररूप भाव, ते
मोक्षनुं साधन छे; शुद्धआत्माना ध्यानरूप आराधना वडे आवो भाव प्रगटे छे.
आत्मानी आराधनाना नायक पंचपरमेष्ठी भगवंतो छे; तेओ पण
शुद्धआत्मस्वरूपने पामेला छे, तेथी तेना स्वरूपनुं ध्यान करतां शुद्धस्वरूप लक्षमां आवे
छे. व्यवहारथी पंचपरमेष्ठीनुं ध्यान अने निश्चयथी पोताना शुद्धआत्मानुं ध्यान, ते
मंगल छे.
पंचपरमेष्ठी भगवंतो शुद्धआत्माना ध्यानवडे मंगलरूप ने शरणरूप थया छे,
तेओ उत्तम छे. एमना जेवा पोताना स्वरूपने जाणीने तेमां तुं जा.....त्वराथी तारा
आत्माने ध्याव....स्वद्रव्यने ग्रहण करीने ध्याव, ने परद्रव्यनुं ग्रहण तथा परद्रव्यनुं
ध्यान त्वराथी छोड.
अहो, आत्मानी आराधना करवामां पंचपरमेष्ठी भगवंतो नेता छे, तेओ
आराधनाना नायक छे, अने आत्माने साधवामां तेओ शूरवीर छे. जेनुं ध्यान करे
तेना जेवो पोताने अनुभवे तो साचुं ध्यान कहेवाय. पंचपरमेष्ठी जेवा ज पोताना
शुद्धस्वरूपने अनुभवतां आत्मामां परम अतीन्द्रिय आनंद थाय छे, ते मंगल छे, ते
शरण छे, ने जगतमां ते उत्तम छे.
परद्रव्य प्रत्येनी वृत्ति तो आकुळतानी जननी छे; अंतरमां स्वद्रव्य तरफ वृत्ति वळे
ते आनंदनी जननी छे. शुद्धआत्मामां ज पांच पद छे, पांच पद क््यांय बहारमां के रागमां
नथी. मुनिपद शुद्धआत्मामां समाय छे, नग्न शरीरमां के पंचमहाव्रतना रागमां कांई
परमेष्ठीपद समातुं नथी. साधुपद ते तो परमेष्ठीपद छे. राग कांई ईष्ट नथी; ने शरीर तो
जड छे. आ रीते रागथी पार ने जडथी भिन्न पोताना शुद्धस्वरूपमां चेतनाने लई