Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : पोष : २४९७
पहेलांं पंचपरमेष्ठीनुं चिंतन, अने पछी तेनुं लक्ष छूटीने पोताना शुद्धस्वरूपना
अरिहंत–सिद्ध ने साधु ए तो मारा घरमां बिराजे छे; आनंदधाम सिद्धसमान हुं
भाई, दुःखमय संसार, तेमां शरण तो पोतानो आत्मा ज छे, तेना शरणे
जा......ते तने बधा दुःखोथी बचावशे! तुं दुःखथी डरतो हो तो अंदरमां जा....जेम
डाघीयो कूतरो पाछळ दोडतो होय त्यां तेनाथी बचवा नानो छोकरो तरत पोताना
पिता वगेरे मोटाना आशरे दोडी जाय छे, तेम संसारना परभावरूपी डाघीया कूतरा,