Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९७ आत्मधर्म : २९ :
राग–द्वेष–मोहरूप दुःख देनारा भावो, तेनाथी तारे बचवुं होय तो अंदरमां महान
शरणरूप एवा तारा चिदानंद स्वभावना शरणे जा. तेना शरणे सर्व दुःखोनो नाश, ने
आनंदनी उत्पत्तिरूप मंगळ थाय छे. अंतर्मुख थईने आत्मानी आवी आराधना करवी
ते ज साची वीरता छे. पंचपरमेष्ठी भगवंतो आत्माने साधवामां शूरवीर छे; अने
आत्मानी आराधनारूप जे मोक्षमार्ग तेमां ते पंचपरमेष्ठी भगवंतो नायक छे. आम
ओळखीने हे जीव! तुं पंचपरमेष्ठी परमगुरुने तेम ज तेमना जेवा पोताना
शुद्धआत्मस्वरूपने अंतरमां ध्याव–एम भगवाननो उपदेश छे. भावशुद्धिनो उपदेश
आपतां आचार्यदेव कहे छे के हे जीव! धर्मनी आराधनाना पंथमां अग्रेसर थईने जेओ
मोक्षमार्गे आगळ गया एवा पंचपरमेष्ठीनुं तुं ध्यान कर. तेओ धर्मनी आराधनाना
नायको छे, धर्मना पंथमां आगळ चालनारा छे; तेमना शुद्धस्वरूपने जाणीने तेनुं ध्यान
कर. तेमना जेवा शुद्धस्वरूपनुं ध्यान कर.
जेम वीरपुरुष, पूर्वना वीरपुरुषोनी शूरवीरतानी वार्ता सांभळीने उत्साहित
थाय छे तेम जे धर्ममां वीर छे, जेने धर्मनी आराधनानो प्रेम छे, ते धर्ममां आगळ
वधेला धर्मात्माओनी आराधनानुं वर्णन सांभळीने आराधना प्रत्ये उत्साहित थाय छे;
प्रेमथी–आदरथी ते आराधक–धर्मात्मानी वात सांभळे छे. भगवंत पंचपरमेष्ठीमांथी
अर्हंत अने सिद्ध तो आराधना पूर्ण करीने स्वयं आराध्य थई गया छे, ने आचार्यादिक
आराधनाना पंथमां अग्रेसर छे. आवा पंचपरमेष्ठीना स्वरूपनुं चिंतन करतां
भावशुद्धि थाय छे. अहा! अरिहंतो–सिद्धो अने साधुओ मोक्षमार्गमां अग्रेसरपणे
आगळ आगळ चाल्या जाय छे, अने जगतना जीवोने ते मुक्तिना मार्गे दोरी रह्या छे;
तेमना स्वरूपना ध्यानथी सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान–सम्यक्चारित्र वगेरेनुं स्वरूप बराबर
समजाय छे, एटले भेदज्ञान थईने मोक्षमार्ग प्रगटे छे. जगतमां मंगलरूप तो आवा
परमेष्ठीपद छे. ते ज उत्तम छे. आराधनाना नायक आ पंचपरमेष्ठी भगवंतो वीर छे,
वीरतावडे तेओ कर्मने जीतनारा छे. शुद्धस्वभाव तरफ वळीने ज शुद्धआत्मानुं ध्यान
थाय छे. जेम केवळी भगवाननी स्तुति ज्ञायकस्वभावना अनुभवथी थाय छे, तेम
पंचपरमेष्ठीनुं ध्यान पण शुद्धात्मानी सन्मुखताथी ज थाय छे.–आवा ध्यानवडे
स्वरूपनी प्राप्ति थाय छे, माटे तेनो उपदेश छे. आ रीते जेणे सम्यग्दर्शनादि भावशुद्धि
प्रगट करी तेओ ज कल्याण–सुखनी परंपराने पामे छे. माटे हे जीव! तुं उद्यमवडे आवी
भावशुद्धि प्रगट कर.
भावप्राभृत गा. १२९ मां प्रमोदथी कहे छे के–अहा, आवी भावशुद्धिना धारक