Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : पोष : २४९७
मुनिवरो धन्य छे.....तेमने नमस्कार हो. श्रेष्ठ सम्यग्दर्शनथी, विशुद्ध ज्ञानथी ने निर्दोष
चारित्रथी जे शुद्ध छे, अने मायाचार जेमने नष्ट थई गयो छे एवा शुद्धभावसहित
श्रमणो धन्य छे. नित्ये त्रिविधे तेमने नमस्कार हो. वाह! आवा भावशुद्धिवंत संतो ते
धर्मना स्थंभ छे, ते मोक्षना पंथी छे, ते प्रशंसनीय छे, ते आदरणीय छे. कुंदकुंदआचार्य
जेवा पण कहे छे के अहा! धन्य छे ते संतोने; तेमना प्रत्ये अमारा त्रिविधे नमस्कार
हो.
जेम भावशुद्धिवंत उत्कृष्ट मुनिने धन्य कह्या, तेम सम्यग्दर्शनरूप भावशुद्धिने
धारण करनारा सम्यग्द्रष्टि आराधक पण धन्य छे, ते मोक्षना पंथे चडेला धर्मात्मानी
भावशुद्धि देखीने तेमना प्रत्ये धर्मीने प्रमोद आवे छे. धर्मनी जिज्ञासावाळाने धर्मात्मा
प्रत्ये आवो प्रमोद आवे छे, भक्ति आवे छे. खरेखर, मोक्षना आराधक जीवोनो
अवतार धन्य छे–धन्य छे. जेने मोक्षमार्गनो अनुराग होय तेने मोक्षमार्गमां अधिक
एवा साधर्मी जीवोने देखीने तेमना प्रत्ये जरूर प्रमोद आवे छे अने भक्ति–बहुमानथी
नमस्कारादि करे छे.
(भावप्राभृत उपरनां प्रवचनमांथी)
* * * * *
जगतमां शुक्ललेश्यावाळा जीवो असंख्याता छे;
तेमां मिथ्याद्रष्टि करतां सम्यग्द्रष्टि जीवो संख्यातगुणा छे.

कोईवार एक समयमां १०८ जीवो एक साथे क्षपकश्रेणी चढे छे;
एक समयमां १०८ जीवो केवळज्ञानी थाय छे;
ने एक समयमां १०८ जीवो मोक्ष पामीने सिद्ध थाय छे.