चारित्रथी जे शुद्ध छे, अने मायाचार जेमने नष्ट थई गयो छे एवा शुद्धभावसहित
श्रमणो धन्य छे. नित्ये त्रिविधे तेमने नमस्कार हो. वाह! आवा भावशुद्धिवंत संतो ते
धर्मना स्थंभ छे, ते मोक्षना पंथी छे, ते प्रशंसनीय छे, ते आदरणीय छे. कुंदकुंदआचार्य
हो.
भावशुद्धि देखीने तेमना प्रत्ये धर्मीने प्रमोद आवे छे. धर्मनी जिज्ञासावाळाने धर्मात्मा
प्रत्ये आवो प्रमोद आवे छे, भक्ति आवे छे. खरेखर, मोक्षना आराधक जीवोनो
अवतार धन्य छे–धन्य छे. जेने मोक्षमार्गनो अनुराग होय तेने मोक्षमार्गमां अधिक
एवा साधर्मी जीवोने देखीने तेमना प्रत्ये जरूर प्रमोद आवे छे अने भक्ति–बहुमानथी
नमस्कारादि करे छे.
तेमां मिथ्याद्रष्टि करतां सम्यग्द्रष्टि जीवो संख्यातगुणा छे.
कोईवार एक समयमां १०८ जीवो एक साथे क्षपकश्रेणी चढे छे;
एक समयमां १०८ जीवो केवळज्ञानी थाय छे;
ने एक समयमां १०८ जीवो मोक्ष पामीने सिद्ध थाय छे.