मोक्षनुं कारण नथी. अने मोक्षना कारणरूप जे शुद्ध रत्नत्रयभाव छे ते बंधनुं
कारण थतुं नथी. जेनाथी मोक्षनुं कार्य थाय तेनाथी बंधनुं कार्य न थाय; अने
जेनाथी बंधनुं कार्य थाय तेनाथी मोक्षनुं कार्य न थाय. आ रीते बंध अने मोक्षना
कारणने भिन्न भिन्न ओळखवा जोईए. –एनुं वर्णन पुरुषार्थसिद्धिउपाय गाथा
२१८ तथा २२० वगेरेमां कर्युं छे. तेमां तीर्थंकरप्रकृतिना बंधना हेतुभूत योग–
कषाय कह्या छे, ने जेनाथी पुण्यनो आस्रव थाय छे एवा शुभोपयोगने अपराध
कह्यो छे. धर्मीजीवना शुभोपयोगने पण अपराध कह्यो छे, त्यां बीजानी शी वात!
अज्ञानीओ ते अपराधना सेवनवडे मोक्षने साधवा मथे छे, –एने मोक्ष क््यांथी
सधाय? समयसारे तो रागथी अत्यंत भेदज्ञान करावीने मोक्षनो मार्ग खुल्लो
कर्यो छे.
वाणीना श्रवण वडे जणाय नहीं, रागवडे जणाय नहीं, पण स्वभाव तरफ झूकेला
अतीन्द्रिय ज्ञानवडे ज जणाय छे. सम्यग्दर्शनमां अतीन्द्रिय आंनदनो प्यालो
धर्मीए पीधो छे, अने पछी मुनिने तो अतीन्द्रिय आनंदनो घणो ज अनुभव
होय छे. ईंद्रिय तरफना भाववडे अतीन्द्रिय आनंदनी भरती आत्मामां आवशे
नहीं. अंतरनी एकाग्रता वडे आत्मा–चैतन्यसमुद्र पोते स्वभावथी उल्लसीने
अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव थाय छे. आवा अनुभवने माटे पहेलांं भगवान
आत्माने जाणीने निःशंक श्रद्धा करवी जोईए के आवा ज्ञाननी अनुभूतिस्वरूप ज
हुं छुं. रागनी अनुभूतिने आत्मा कहेता नथी, ज्ञाननी अनुभूति ते ज आत्मा छे.
जेटलुं ज्ञानपणे अनुभवमां आवे छे तेटलो ज हुं छुं, ज्ञानथी भिन्न कोई
परभावो हुं नथी. –आवो अनुभव करे त्यारे ज जीवने शुद्धात्मानी सिद्धि थाय छे,
बीजी कोई रीते शुद्धात्मानी सिद्धि थती नथी.
भाग लेवा गुजरातना हजारो माणसो उपरांत मुंबई, अमदावाद, दिल्ही,
भोपाल,