Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 39 of 53

background image
: ३६ : आत्मधर्म : पोष : २४९७
प्रवचनमां अत्यंत सहेली शैलिथी समजावतां गुरुदेवे कह्युं के–
आ समयसार–सिद्धांतशास्त्र छे, तेनी ३८ मी गाथामां पूर्ण आत्मानी वात छे,
आत्मा शुद्ध ज्ञानानंद स्वरूप छे; ते पोते ज छे. जेम कोईना हाथमां ज सोनुं
होय पण भूलीने बहार शोधतो होय, पछी याद आवतां सोनुं पोताना हाथमां ज
देखीने आनंदित थाय. तेम आत्मानो अनुभव थतां मुमुक्षु जीव कहे छे के अरे! हुं पोते
ज चैतन्यपरमेश्वर छुं, ज्ञान–आनंदना परम ऐश्वर्यवाळो मारो आत्मा ज छे, –पण
मारुं स्वरूप हुं भूल्यो हतो, ते श्री वीतरागमार्गी गुरुओए मने मारामां बताव्युं.
अहा, मारा परम भाग्य छे के मने आवा गुरु मळ्‌या ने आवुं आत्मस्वरूप समजाव्युं.
श्रीगुरुए शुं समजाव्युं? तारो आत्मा ज पोतानो परमेश्वर छे, ज्ञानदर्शन–सुखस्वभाव
तारामां ज भर्यो छे. –एम आत्मानुं स्वरूप ‘निरंतर’ समजाव्युं. जो के श्रीगुरु कांई
निरंतर कहेता न होय, तेओ तो अमुक काळ उपदेश आपे; पण–