देखीने आनंदित थाय. तेम आत्मानो अनुभव थतां मुमुक्षु जीव कहे छे के अरे! हुं पोते
ज चैतन्यपरमेश्वर छुं, ज्ञान–आनंदना परम ऐश्वर्यवाळो मारो आत्मा ज छे, –पण
मारुं स्वरूप हुं भूल्यो हतो, ते श्री वीतरागमार्गी गुरुओए मने मारामां बताव्युं.
अहा, मारा परम भाग्य छे के मने आवा गुरु मळ्या ने आवुं आत्मस्वरूप समजाव्युं.
श्रीगुरुए शुं समजाव्युं? तारो आत्मा ज पोतानो परमेश्वर छे, ज्ञानदर्शन–सुखस्वभाव
तारामां ज भर्यो छे. –एम आत्मानुं स्वरूप ‘निरंतर’ समजाव्युं. जो के श्रीगुरु कांई
निरंतर कहेता न होय, तेओ तो अमुक काळ उपदेश आपे; पण–