पोते समजवा माटे निरंतर उद्यमी छे तेथी निमित्तरूप श्रीगुरु पण निरंतर समजावे छे
एम कह्युं, जुओ, आ आत्मानी समजणनी रीत! आवी समजण करवा जेवी छे.
अंतरंगवृत्तिना प्रयत्न वडे मारुं जेवुं स्वरूप छे तेवुं में अनुभव्युं. केवुं अनुभव्युं?
चैतन्यमात्र आत्मा हुं मारा आत्माथी ज प्रत्यक्ष छुं; बीजा कोईनी अपेक्षा वगर
(ईन्द्रिय के रागनी अपेक्षा वगर) पोते पोताना अनुभवथी ज हुं मने प्रत्यक्ष जाणुं छुं.
जेम भोळो छोकरो खोवाई न जाय ते माटे तेनी माताए दोरो बांधी दीधो हतो, तेम
अहीं श्रीगुरुए शुद्धात्माना लक्षणरूप दोरो बांध्यो के‘ज्ञान ते आत्मा छे. ’ –आवा
लक्षणथी आत्माने लक्षगत कर्यो त्यां अपूर्व भेदज्ञान थयुं, ते जीव
समजण पोते करे त्यारे थाय छे. जेम, जेने भूख लागी होय ते पोते खाय त्यारे पेट
भराय, पण बीजो खाय तेथी कांई आनुं पेट न भराय, तेम जेने आत्मा समजवानी
भूख लागी होय ते पोते अंतरनी धगश वडे आत्मानी समजण करे तो थाय छे; पण
बीजा ज्ञानीनी सामे जोया करे ने पोतामां अंतर्मुख न थाय तो साचुं ज्ञान थतुं नथी.
ज्ञानी तो कहे छे के तुं तारामां जो. तारो परमेश्वर–आत्मा तारामां ज छे; ते ज तारुं
निजपद छे. आवा आत्माने जाणीने धर्मीजीव आत्माराम थयो, आत्मा ज तेना
विश्रामनुं धाम छे, तेने अनुभवमां लईने तेमां एकाग्र थयो. जेम अजवाळामां पडेली
सोय अंधारामां शोधे तो मळे नहीं, ज्यां होय त्यां शोधे तो मळे, न होय त्यां शोधे तो
क््यांथी मळे? तेम आत्माने अज्ञानीजीवो रागमां ने देहमां शोधे छे. आत्मा तो ज्ञानना
अजवाळामां छे; ते अजवाळामां शोधवाने बदले रागना अंधारामां के जडना
अंधारामां शोधे तो आत्मा क््यांथी मळे? आत्मा ज्यां होय त्यां शोधे तो मळे; पण
ज्यां आत्मा नथी त्यां शोधे तो ते क््यांथी मळे?