
लवाजम पोष
चार रूपिया
अत्यारे बहार आव्युं छे ने हजारो जीवो जिज्ञासाथी ते सांभळे छे. आवा सत्यनो पक्ष
करवा जेवो छे. आत्माना स्वभावनी आ सत्य वात लक्षमां लईने तेनो पक्ष करवा
जेवो छे, ने पछी वारंवार तेना अभ्यास वडे तेमां दक्ष थईने अनुभववडे प्रत्यक्ष करवा
जेवुं छे. तद्न सहेली शैलिथी सौने समजाय तेवुं आ सत्य छे. ज्ञानप्रभावनानी उत्तम
लागणीपूर्वक गुरुदेव कहे छे के–अत्यारे तो लोकोने आवुं सत्य मळे ते माटे सहेलुं अने
सस्तुं साहित्य खूब प्रचार करवा जेवुं छे. बीजे ठेकाणे मोटा खर्चा करवा करतां आवा
परम सत्यनो प्रचार थाय तेवुं साहित्य ‘सहेलुं अने सस्तु’ खूब बहार आवे ते करवा
जेवुं छे. जो के सोनगढथी घणुं साहित्य बहार आव्युं छे ने लोको पण खूब वांचे छे,
सात–आठ लाख पुस्तको तो बहार पडी गयां छे, छतां हजी घणुं साहित्य सौने समजाय
तेवी सहेली भाषामां ने सस्ती किंमतमां वधु ने वधु बहार आवे ने साचा ज्ञाननो
प्रचार थाय तेवुं करवा जेवुं छे. अत्यारे तत्त्वना जिज्ञासु घणा लोको तैयार थया छे, ने
आत्माना स्वभावनी आवी ऊंची वात प्रेमथी सांभळे छे. जिज्ञासु लोकोना भाग्ये
आवुं वीतरागी सत्य बहार आव्युं छे.