Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 5 of 53

background image
: २ : आत्मधर्म : पोष : २४९७
नमस्कार हो... ज्ञानचेतनावंत मुनिभगवंतोने
अमदावाद पछी कारतक वद १३–१४ना रोज पू. श्री कानजीस्वामी
हिंमतनगर पधार्या हता. महावीरनगर–सोसायटीमां सुंदर जिनमंदिर अने
स्वाध्याय मंदिर छे. बे दिवसना प्रवचन अने चर्चाओमां गुजरातना घणा
जिज्ञासुओए उत्साहथी लाभ लीधो हतो. प्रवचनमां, मोक्षना कारणरूप
ज्ञानचेतना केवी होय, अने ते ज्ञानचेतना–धारक दिगंबर मुनि भगवंतोनी
अलौकिक दशा केवी होय, ते समजावीने तेनो महिमा कर्यो हतो.
आत्मा स्वतंत्र, देहथी भिन्न, चैतन्यवस्तु छे; ते जाणनार छे. जाणनारे पोते
पोताने न जाण्यो ते अज्ञान छे अने ते संसार छे. जाणनार स्वभाव ते ज्ञानचेतनामय
छे. राग–द्वेषने जाणवामां ज्ञानने एकाग्र कर्युं ते अज्ञानीनी कर्मचेतना छे; अने हर्ष–
शोकरूप कर्मफळना वेदनमां ज्ञानने एकाग्र कर्युं ते अज्ञानीनी कर्मफळचेतना छे; पण ते
रागादिथी भिन्न एवी ज्ञानचेतनाने तो ते अज्ञानी ओळखतो पण नथी.
जाणनारे पोताने न जाण्यो ते अज्ञानचेतना छे; पोताने भूलीने बीजाने जाण्युं,
ने जेने जाण्युं तेने ज पोतानुं मानी लीधुं; –आवी अज्ञानचेतनापूर्वक जे कांई व्रत–तप–
शास्त्रज्ञान–देवपूजा वगेरे शुभभाव करे ते बधुंय संसारहेतु ज छे. ते मोक्षनो हेतु थतो
नथी. ज्ञानीनेय कांई राग ते मोक्षनुं कारण नथी, तेने रागथी भिन्न जे ज्ञानचेतना छे
ते ज मोक्षनुं कारण छे.
–आवुं ज्ञान तो बहु थोडा जीवोने थाय छे!
–खरी वात छे; पण थोडा जीवोमां एक पोते पण भळी जवुं.
प्रश्न:– आप कहो छो ते वात तो साची छे, पण आप मुनिओने मानता नथी
एम लोको कहे छे?
उत्तर:– अरे भाई! रोज सवारमां ऊठतावेंत ज सर्वे मुनिवरोने नमस्कार
करीए छीए. णमो लोए सव्व साहूणं कहीने एमने नमस्कार करवामां आवे छे. अहो,
मुनिदशा तो अलौकिक परमेष्ठीपद छे. मुनि ते तो भगवान छे, एने कोण न माने?
पण मुनिदशा जेने होय तेने मुनि मनाय ने? मुनिदशा