Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९७ आत्मधर्म : ३ :
शुं छे तेनी ज घणा लोकोने खबर नथी. जेने मुनिदशा न होय, श्रद्धा पण साची न
होय, मुनिने योग्य आचरण पण न होय–एवाने मुनि मानी लेतां तो ऊल्टुं साचा
मुनिभगवंतोनो अनादर थाय छे. मुनिने परम आदरथी मानीए छीए, –पण
मुनि होवा जोईएने? जेने अंतरमां आत्मानुं भान होय, अने अंदर घणी
लीनतारूप चारित्रदशामां आत्माना परम आनंदना घूंटडा पीता होय, तद्न
दिगंबर दशा होय–एवा मुनि ते तो भगवान छे. अत्यारे एवा मुनिना दर्शन
अहीं दुर्लभ छे, –पण तेथी कांई गमे तेवा विपरीत स्वरूपवाळाने मुनि न मानी
लेवाय. –आ तो वीतरागनो मार्ग छे, तेमां गोटा न चाले. पोताना हितने माटे
साचो निर्णय करवानी आ वात छे.
जेने भवनां दुःखथी छूटवुं होय ने आत्मानुं मोक्षसुख अनुभववुं होय तेने
माटेनी आ वात छे. मिथ्यात्वरूप जे महान रोग, तेनाथी केम छूटाय तेनी आ रीत
बतावे छे जेणे रागादि परभावोमां एकता मानी, ने तेनाथी भिन्न ज्ञानचेतनाने
न जाणी, तेने सम्यग्दर्शन पण नथी, तो मुनिदशा क््यांथी होय? भाई! एकवार तुं
परभावोथी जुदी तारी ज्ञानचेतनावंत वस्तुने अनुभवमां ले तो तने सम्यग्दर्शन
थशे ने तारा जन्म–मरणनो छेडो आवशे. आवी ज्ञानचेतनानो अनुभव
गृहस्थनेय चोथा गुणस्थाने थाय छे. आठ वर्षनी दीकरी पण आवो अनुभव करी
शके छे. गमे तेटला शुभभाव करे पण आवा अनुभवरूप ज्ञानचेतना वगर कदी
धर्म थाय नहीं.
प्रश्न:– शुभरागथी धर्म नथी थतो तोपछी बधो शुभराग छोडी दईए तो?
उत्तर:– बधो शुभराग छोडवा जेवो छे एम पहेलांं श्रद्धा तो करो.–एवी
श्रद्धा पछी पण पूजनादि शुभराग भूमिका मुजब थाय पण धर्मीजीव ते रागने
ज्ञानचेतनाथी छूटो ज जाणे छे, एटले ज्ञानचेतनामांथी तो बधो राग तेणे छोडी ज
दीधो छे. ज्ञानचेतना साथे रागना एक कणियाने पण धर्मीजीव भेळवता नथी.
जुओ भाई, राग होय ते जुदी वात छे, पण ज्ञानचेतनामां तो राग नथी.
आत्माना भूतार्थस्वभावने अनुभवनारी जे चेतना छे ते चेतना सम्यग्दर्शन–
ज्ञान–चारित्ररूप छे, ने तेने ज परमार्थधर्म कह्यो छे, ते ज मोक्षनो हेतु छे. ए
सिवाय जे व्यवहारना शुभराग छे अने लोको जेने धर्म माने छे ते कांई परमार्थ
धर्म नथी,