Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : पोष : २४९७
मुनिवरो तो आवी ज्ञानचेतनारूप परमार्थ धर्मना साधक छे, तेने ओळखे तो
ज मुनिने खरेखर मान्या कहेवाय. अज्ञानी व्रतादिना शुभरागने ज देखे छे एटले मुनि
पण ते राग ज करता होय–एम ते समजे छे, पण अंदरमां (फोतरांथी भिन्न चोखानी
जेम) रागथी भिन्न जे चोख्खी ज्ञानचेतना मुनिने वर्ते छे, ते ज मोक्षनुं साचुं कारण
छे तेने अज्ञानी ओळखतो नथी, एटले खरेखर ते मुनिने ओळखतो नथी. मुनिनुं खरूं
स्वरूप ओळखे तो तो मोक्षमार्गनी ओळखाण थई जाय, ने पोताने पण
ज्ञानचेतनारूप मोक्षमार्ग प्रगटे.
आवी ज्ञानचेतना ते धर्म छे. शुभराग ते धर्म नथी पण कर्म छे; धर्म तो तेने
प्रश्न:– आवो अनुभव अने सम्यग्दर्शन करवा जेवुं छे ए वात खरी, पण ते न
उत्तर:– त्यांसुधी तेना लक्षे तेनो ज उद्यम करवो; अंतरमां वारंवार तेनो विचार
करीने निर्णय करवो. साचो निर्णय करे तो अनुभव थया वगर रहे नहीं. राग होय ते
जुदी वात छे पण सर्वे राग वगरनो ज्ञानस्वभाव ज हुं छुं–एम लक्षमां लेवुं जोईए.
आवा स्वभावने लक्षमां लईने तेनो अभ्यास करतां, तेनो रस वधतां उपयोग तेमां
वळे छे ने विकल्पथी पार अतीन्द्रिय आनंदना स्वाद सहित सम्यग्दर्शन थाय छे. आवा
सम्यग्दर्शन पछी मुनिपणुं होय; एनी तो घणी निर्मोह वीतरागदशा छे. गमे तेवी
ठंडीमांय शरीर उपर वस्त्र ढांकवानी वृत्ति ज जेने ऊठती नथी, अंदर चैतन्यना
शांतरसमां ठरीने ढीम थई गया छे. –आवा वीतराग दिगंबर मुनिवरो ज्ञानचेतनावडे
मोक्षने साधी रह्या छे, तेओ महा पूजनीक वंदनीक छे, पंचपरमेष्ठी भगवानमां जेमनुं
स्थान छे. –नमस्कार हो. ज्ञानचेतनावंत ते मोक्षमार्गी मुनि भगवंतोने
णमो लोए सव्वसाहूंण