
पण ते राग ज करता होय–एम ते समजे छे, पण अंदरमां (फोतरांथी भिन्न चोखानी
जेम) रागथी भिन्न जे चोख्खी ज्ञानचेतना मुनिने वर्ते छे, ते ज मोक्षनुं साचुं कारण
छे तेने अज्ञानी ओळखतो नथी, एटले खरेखर ते मुनिने ओळखतो नथी. मुनिनुं खरूं
स्वरूप ओळखे तो तो मोक्षमार्गनी ओळखाण थई जाय, ने पोताने पण
ज्ञानचेतनारूप मोक्षमार्ग प्रगटे.
जुदी वात छे पण सर्वे राग वगरनो ज्ञानस्वभाव ज हुं छुं–एम लक्षमां लेवुं जोईए.
आवा स्वभावने लक्षमां लईने तेनो अभ्यास करतां, तेनो रस वधतां उपयोग तेमां
वळे छे ने विकल्पथी पार अतीन्द्रिय आनंदना स्वाद सहित सम्यग्दर्शन थाय छे. आवा
सम्यग्दर्शन पछी मुनिपणुं होय; एनी तो घणी निर्मोह वीतरागदशा छे. गमे तेवी
ठंडीमांय शरीर उपर वस्त्र ढांकवानी वृत्ति ज जेने ऊठती नथी, अंदर चैतन्यना
शांतरसमां ठरीने ढीम थई गया छे. –आवा वीतराग दिगंबर मुनिवरो ज्ञानचेतनावडे
मोक्षने साधी रह्या छे, तेओ महा पूजनीक वंदनीक छे, पंचपरमेष्ठी भगवानमां जेमनुं
स्थान छे. –नमस्कार हो. ज्ञानचेतनावंत ते मोक्षमार्गी मुनि भगवंतोने