Atmadharma magazine - Ank 327
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९७ आत्मधर्म : ३९ :
वांचको साथे वातचीत.......
प्रश्न:– घणा लोको पूछे छे के–तमे व्यवहारने मानो छो?
उत्तर:– गुरुदेव कहे छे : हा, व्यवहार जेम छे तेम तेने जाणवो ते सत्य छे.
व्यवहारने व्यवहार तरीके जेम छे तेम स्वीकारीए छीए, पण तेना आश्रयथी
सम्यग्दर्शनादि धर्म थवानुं मानता नथी.
प्रश्न:– व्यवहारने असत्य कहो छो ने?
उत्तर:– जे व्यवहार छे ते परमार्थनुं कारण खरेखर नथी; ते कारण न होवा
छतां तेने कारण कहेवुं–ते असत्य छे. ते सत्य कारण न होवा छतां तेने कारण कह्युं ते
उपचार छे; उपचार छे माटे ते सत्य नथी.
रागने राग तरीके जाणवो ते कांई असत्य नथी; तेमज देव–गुरु वगेरे
निमित्तोने निमित्त तरीके जाणवा ते कांई असत्य नथी, राग राग तरीके सत्य ज छे, ने
निमित्त निमित्त तरीके तो सत्य ज छे. पण तेने कारणे धर्म थवानुं कहेवुं ते उपचार छे,
ते सत्य नथी. आ अपेक्षाए उपचाररूप व्यवहारने असत्य कहेवामां आवे छे. राग के
निमित्त ते मोक्षनुं खरूं कारण न होवा छतां व्यवहारनय तेनामां कारणपणानो उपचार
करीने तेने कारण कहे छे, ते साचुं कारण नथी. साचुं कारण तो निश्चयस्वभावना
आश्रये छे; माटे निश्चयने सत्य कह्यो छे.
द्रव्य–पर्यायनो भेद पाडीने, त्रिकाळी द्रव्यने आत्मा कहेवो ते निश्चय ने पर्यायने
आत्मा कहेवो ते व्यवहार; पण पर्यायने पर्यायरूपे जाणवी ते कांई व्यवहार नथी.
ए उत्साही युवानोए कोलेजनुं भणतर केम छोड्युं?
कोलेजशिक्षणमां दाकतरी लाईनना कोर्समां देडका कापवानुं वगेरे जे कू्ररहिंसाकार्य
आवे छे ते बाबतमां केटलाक जैन युवान बंधुओए मार्गदर्शन मांगेल, तेथी आ
संबंधमां आपणा बालविभागना उत्साही कोलेजियन सभ्यो पासेथी तेमना
जातअनुभवनी माहिती मेळवीने जणाववानुं के–कोई पण जैने ए प्रकारनो सीधी
पंचेन्द्रिय जीवनी हिंसावाळो कोर्स लेवो जोईए नहीं. फत्तेपुरमां चेतनभाई–के जेओ
शिक्षणमां ऊंचो नंबर मेळवता, तेओ कोलेज भणतरना पोताना कोर्समां आवी
जीवहिंसा देखी न शक््या ने तेमणे ए भणतरने तिलांजलि आपी दीधी. ने ए रीते
बीजा युवानोने पण साचुं