ः फागण : २४९७ आत्मधर्म : ७ :
सिद्धभगवंतोने हुं वंदन करुं छुं; तेम ज ते सिद्धपदना उपायरूप मोक्षमार्गने हुं
वंदन करुं छुं.
* संतो प्रत्येनो विषय अने पोतानी लघुतापूर्वक कहे छे के–अहो! क््यां आ
समयसार जेवुं महान कार्य? अने क््यां मारी अल्पबुद्धि! श्री कुंदकुंदाचार्य अने
अमृतचंद्राचार्य जेवा ‘महा समर्थ मुनि भगवंतोए जे समयसारनी रचनानुं
महान कार्य कर्युं ते–अनुसार हुं पण तेना भावोने आ कवितामां गूंथवानो मारी
अल्पबुद्धिथी प्रयत्न करुं छुं. क््यां ए अगाध ज्ञानना दरिया मुनिभगवंतो! ने
क््यां हुं! –छतां भक्तिवश हुं आ समयसारनाटक ग्रंथनी हिंदीमां रचना करवा
उद्यमी थयो छुं.
हीरानी कणीथी वींधेला रत्नो–मोती जो तैयार होय, तो पछी तेने रेशमनी
दोरीमां परोवीने माळा बनाववी ते सहेलुं छे; तेम समयसार तो रत्नो छे, मोती छे;
अने अमृतचंद्रसूरिए टीका वडे तेना अर्थो छेदी–भेदीने खुल्ला करीने समजवानुं अत्यंत
सरल करी दीधुं छे, तेथी मारी अल्पबुद्धिथी समजवामां आव्युं तेम ज आ शास्त्ररूपे
गूंथवानुं सरल बन्युं. आ रीते पूर्वाचार्योए जे प्रमाणे कह्युं ते प्रमाणे कहेवा माटे मारी
मति सावधान थई छे. जेम मोटा पुरुषो जे भाषा बोले छे ते शीखीने बाळक पण तेवी
भाषा बोले छे, तेम महापुरुषोए शास्त्रमां जे भाव कह्या छे ते अनुसार समजीने हुं
आ शास्त्रमां कहुं छुं.
जुओ तो खरा, समयसारनो महिमा! समयसारनी रचना ते तो रेशमनी
दोरीमां साचा रत्नो परोववा जेवुं छे. एमां अध्यात्मरसनुं झरणुं वहे छे अने भावथी
एनुं श्रवण करतां हैयानां फाटक खुल्ली जाय छे.
अरिहंत प्रभुनो परिवार
हे भव्य! उल्लासपूर्वक आत्माना
स्वभावनी ओळखाण वडे
सम्यग्दर्शनादि प्रगट करीने तुं
अरिहंत भगवानना परिवारमां
आवी जा.