Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : फागण : २४९७
छे; आत्मशक्तिनी वृद्धिना उद्यम सहित ज्ञानसूर्यने प्रकाशित करे छे. भेदज्ञान
तो प्रगट्युं छे ने केवळज्ञानने आराधी रह्या छे.
* –आवा गुणो सहित समकिती धर्मात्मा छे ते भवसागरने तरे छे. आवा
सम्यग्दर्शन वगर बीजा कोई उपायथी भवसागरने तरवा मांगे तो ते तरी शके
नहीं. भवसागरथी जेणे तरवुं होय ने मोक्षने साधवो होय तेओ आवा
सम्यग्दर्शनने धारण करो. सम्यग्दर्शनने धारण करनार जीव अल्पकाळमां
भवसागरने तरीने मोक्ष पामे छे.
* सम्यग्द्रष्टिनो महिमा बताव्यो; हवे तेनाथी विरुद्ध मिथ्यात्वी जीव केवो छे ते
पण बतावे छे.–धर्म शुं, आत्मानो स्वभाव शुं, जीव–अजीवनुं भिन्न–भिन्न
स्वरूप केवुं छे? तेने तो ते जाणतो नथी, एवा मिथ्यात्वी जीवनुं बधुंय
कथन तत्त्वथी विरुद्ध मिथ्यात्वमय होय छे; भगवाने कहेलुं अनेकांतमय
साचुं वस्तुस्वरूप तो ते जाणतो नथी, एटले एकांतनो पक्ष करीने ठेकाणे–
ठेकाणे ते वादविवाद ने लडाई उभा करे छे. जगतमां आवा मिथ्याद्रष्टि
जीवो होय छे तेनुं ज्ञान कराववा तेनुं वर्णन कर्युं छे. आवो मिथ्यात्वभाव
सर्वथा छोडवा जेवो छे.
सम्यग्द्रष्टि केवा होय ते ओळखाव्युं. मिथ्यात्वी केवा होय ते पण ओळखाव्युं.
*
हवे कहे छे के अहो! ते सिद्धभगवंतोने, अने तेना उपायरूप रत्नत्रयने वंदन
हो–के जेमना प्रसादथी हुं आ समयसार नाटक ग्रंथनी रचना करुं छुं–
वंदुं शिव अवगाहना, अरु वंदुं शिवपंथ;
जसु प्रसाद भाषा कहुं नाटक नाम गरंथ १०
अत्यंत विनयपूर्वक पं. बनारसीदासजी कहे छे के अहो, जेमना प्रसादथी हिंदी
भाषामां आ नाटकसमयसार जेवा महान अध्यात्मरस झरता ग्रंथनी रचना थाय छे ते
असंख्य प्रदेशरूप आत्मअवगाहनावाळा