Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २४९७ आत्मधर्म : ११ :
आनंदोल्लासपूर्वक उजवायो हतो. प्रवचनमां अष्टपाहुड वंचातुं हतुं ते पूरुं थईने
फागण सुद बीजथी नियमसार शरू थयेल छे; बपोरे पं. बनारसीदासजीनुं हिंदी
समयसार नाटक वंचाय छे (–जे हालमां नवुं छपायेल छे; किंमत चार रूपिया छे.)
चैत्र–वैशाख–जेठ मासमां विहारनो जे कार्यक्रम अगाउ जणावी गया छीए तेमां
वधारामां जेतपुर पछी माळीया–हाटीना (सोरठ) नो बे दिवसनो कार्यक्रम नक्की थयो
छे.
गुरुराजना मंगल सत्संगनो आ सुअवसर पामीने सौ साधर्मीओ उल्लास
अने बहुमानपूर्वक आत्महितमां एक–बीजाने प्रोत्साहन आपीने आगळ वधो.
बोटाद शहेरना प्रवचनोमांथी
देहथी भिन्न आत्मा चैतन्य प्रतापथी तपतो शोभतो प्रभु छे.
आत्मानी प्रभुताने कोई तोडी शके नहीं. अरिहंतप्रभुने अने सिद्ध
प्रभुने आत्मानी जे प्रभुता प्रगटी ते क््यांथी प्रगटी? आत्मामां तेवी
शक्ति हती ते ज प्रगटी छे. एवा ज शक्तिस्वभाववाळो आ आत्मा छे;
–एनुं भान करतां पर्यायमां सम्यग्दर्शनादि प्रभुता प्रगटे छे.
आवा पोताना आत्मानुं पहेलां स्वसंवेदन थाय, स्वसंवेदनमां
राग वगर, ईंद्रिय वगर, आत्मा अत्यंत स्पष्ट अनुभवमां आवे छे.
आत्मामां ज्ञान–आनंद वगेरे जे शक्तिओ छे ते स्वयं पोताना
स्वभावथी ज छे, कोई बीजाने लीधे नथी. पोतानो जेवो स्वभाव छे
तेवो पोताने स्वादमां आवे तेनुं नाम धर्म छे. आत्मानो जे धर्म, एटले
के आत्मानो जे स्वभाव, तेमां परनुं कोई कार्य नथी, तेमज ते
स्वभावमां बीजुं कोई कारण नथी. सम्यकत्वादि जे पर्याय छे ते
आत्मानुं कार्य छे ने आत्मा ज तेनो कर्ता छे; बीजुं कोई ते
सम्यक्त्वादिनुं कारण नथी. पोतानां कारण कार्य–पोतामां छे, परमां नथी.
आवुं भेदज्ञान थतां परनुं ममत्व रहेतुं नथी; एटले पोताना स्वभावमां
ज अंतर्मुख थतां निर्मळ वीतराग दशा प्रगटे छे, ते मोक्षनुं कारण छे.
आवा आत्माने जाणीने तेमां एकाग्रताथी सर्वज्ञ थयेला
परमेश्वर, ज्यां सुधी शरीरसहित वर्ते त्यांसुधी तेमने अरिहंतदशा
कहेवाय छे. अने तेमनुं शरीर