फागण सुद बीजथी नियमसार शरू थयेल छे; बपोरे पं. बनारसीदासजीनुं हिंदी
समयसार नाटक वंचाय छे (–जे हालमां नवुं छपायेल छे; किंमत चार रूपिया छे.)
चैत्र–वैशाख–जेठ मासमां विहारनो जे कार्यक्रम अगाउ जणावी गया छीए तेमां
छे.
प्रभुने आत्मानी जे प्रभुता प्रगटी ते क््यांथी प्रगटी? आत्मामां तेवी
शक्ति हती ते ज प्रगटी छे. एवा ज शक्तिस्वभाववाळो आ आत्मा छे;
–एनुं भान करतां पर्यायमां सम्यग्दर्शनादि प्रभुता प्रगटे छे.
आत्मामां ज्ञान–आनंद वगेरे जे शक्तिओ छे ते स्वयं पोताना
स्वभावथी ज छे, कोई बीजाने लीधे नथी. पोतानो जेवो स्वभाव छे
तेवो पोताने स्वादमां आवे तेनुं नाम धर्म छे. आत्मानो जे धर्म, एटले
के आत्मानो जे स्वभाव, तेमां परनुं कोई कार्य नथी, तेमज ते
स्वभावमां बीजुं कोई कारण नथी. सम्यकत्वादि जे पर्याय छे ते
आत्मानुं कार्य छे ने आत्मा ज तेनो कर्ता छे; बीजुं कोई ते
सम्यक्त्वादिनुं कारण नथी. पोतानां कारण कार्य–पोतामां छे, परमां नथी.
आवुं भेदज्ञान थतां परनुं ममत्व रहेतुं नथी; एटले पोताना स्वभावमां
ज अंतर्मुख थतां निर्मळ वीतराग दशा प्रगटे छे, ते मोक्षनुं कारण छे.
कहेवाय छे. अने तेमनुं शरीर