अरिहंतप्रभुना आत्मानी जेने ओळखाण थाय तेने तो पोताना आत्मामां अनंत
आत्मगुणोनो वैभव देखाय छे; तेनुं वर्णन आ समयसारमां छे. एवा अरिहंत
परमात्मा सीमंधर भगवान, वगेरे अत्यारे मनुष्यलोकमां विदेहक्षेत्रमां बिराजी रह्या
छे. ते अरिहंत भगवान ज्यारे शरीर रहित थई जाय त्यारे सिद्ध कहेवाय छे. आवुं
अरिहंतपणुं ने सिद्धपणुं चैतन्यना पाताळमां रहेलुं छे; अंदर चैतन्यनुं ऊंडुं पाताळ
फोडीने जे ज्ञानपरिणति प्रगटी ते धर्म छे. भाई, शरीरमां ने रागमां कांई धर्म नथी;
धर्म तो चैतन्यना पाताळमां ऊंडे–ऊंडे छे. अंतरनी द्रष्टि वडे ते प्रगटे छे. आवा
आत्मानुं श्रवण करीने तेनी सन्मुखता करवी ते पण अपूर्वभाव छे. आत्मानो जे
सर्वज्ञ स्वभाव, तेनी सन्मुख थतां ते तरंग ऊठे तेमां अनंत आनंद छे. चैतन्यना
तरंग आनंद सहित होय छे; तेमां रागनो अनुभव नथी.
आत्मानी सत्ता, आत्मानी प्रभुता, आत्मानुं सुख–तेनो स्वीकार पोताना स्वभावनी
सन्मुखता वडे ज थाय छे. आवा आत्माना स्वीकारमां अनंत सर्वज्ञनो स्वीकार थाय
छे. सर्वज्ञ,–अनंत जेनुं ज्ञान छे–एवा सर्वज्ञ भगवंतो आ जगतमां अनंत छे. अनंत
सर्वज्ञनो स्वीकार करनार ज्ञाननी ताकात केटली? रागमां एवी ताकात नथी, ने
परसन्मुखथी ज्ञानमांय एवी ताकात नथी के सर्वज्ञने स्वीकारी शके. आत्माना
स्वभावनी सन्मुख थयेला अतीन्द्रिय ज्ञानमां ज एवी ताकात छे के अनंता सर्वज्ञना
अस्तित्वनो स्वीकार पोतानी एक पर्यायमां करी शके.
सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान–अतीन्द्रिय आनंद वगेरेनुं परिणमन थयुं. संसारमार्ग पलटीने
मोक्षनो मार्ग शरू थयो. आत्मानो आवो भाव प्रगट्यो तेनी पासे स्वर्गनी पण कांई
किंमत नथी. स्वर्गमां तो अनंतवार जई आव्यो पण आत्माना स्वरूपनो जे
निज वैभव ते कदी जाण्यो नथी. एवा निजवैभवनी आ वात छे, के जेने ओळखतां
परम आनंद सहित मोक्षदशा प्रगटे छे.