Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २४९७ आत्मधर्म : १३ :
भ ग वा न पा र स ना थ
लेखांक छेल्लो–आठमो (गतांकथी चालु)
भगवान पारसनाथनुं जीवनचरित्र आ अंके
पूरुं थाय छे. नाना–मोटा सर्वे जिज्ञासुओए आ पवित्र
कथामां खूब रस लीधो छे. पूर्वना दशमा भवे कमठ
अने मरूभूतिना अवतारमां कमठना जीवे क्रोधपूर्वक
उपसर्ग शरू कर्या, अने मरूभूति (पारसनाथ) ना जीवे
क्षमापूर्वक ते सहन कर्या. क्रोधनुं अने क्षमानुं केवुं फळ ते
जीवो पाम्या ते पण आपणे जोयुं. हवे अंतिम
अवतारमां पारसप्रभु दीक्षा लईने मुनिदशामां ध्यान
धरी रह्या छे ने कमठनो जीव संवर नामनो देव थयो छे;
ते देव विमानमां बेसीने फरवा नीकळ्‌यो छे. पछी शुं
थाय छे ते आप अहीं वांचो.
क्रमठ द्वारा अंतिम उपसर्ग: क्षमानो महान विजय: कमठना जीवने धर्मप्राप्ति
आकाशमां संवरदेवनुं विमान पसार थई रह्युं हतुं; पण ज्यां ध्यानमां ऊभेला
ते संवरदेवे विमानमांथी ऊतरीने जोयुं तो पारसमुनिराजने ध्यानमां देख्या!
बस, एने देखतांवेंत भाईसाहेब क्रोधथी सळगी ऊठया के नक्की आणे ज मारा
विमानने रोकयुं छे. एणे तो भयंकर विकराळ रूप धारण कर्युं ने भगवान सामे
आवीने ऊभो,–जाणे के हमणां भगवानने खाई जशे–एम अत्यंत क्रोधथी मोढुं फाडीने
कहेवा