कथामां खूब रस लीधो छे. पूर्वना दशमा भवे कमठ
अने मरूभूतिना अवतारमां कमठना जीवे क्रोधपूर्वक
उपसर्ग शरू कर्या, अने मरूभूति (पारसनाथ) ना जीवे
क्षमापूर्वक ते सहन कर्या. क्रोधनुं अने क्षमानुं केवुं फळ ते
जीवो पाम्या ते पण आपणे जोयुं. हवे अंतिम
अवतारमां पारसप्रभु दीक्षा लईने मुनिदशामां ध्यान
धरी रह्या छे ने कमठनो जीव संवर नामनो देव थयो छे;
ते देव विमानमां बेसीने फरवा नीकळ्यो छे. पछी शुं
थाय छे ते आप अहीं वांचो.
विमानने रोकयुं छे. एणे तो भयंकर विकराळ रूप धारण कर्युं ने भगवान सामे
आवीने ऊभो,–जाणे के हमणां भगवानने खाई जशे–एम अत्यंत क्रोधथी मोढुं फाडीने
कहेवा