Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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*...त्यारे सम्यदर्शन थयुं *
परम आत्मतत्त्वनी अनुभूतिमां ‘हुं द्रव्य छुं के हुं
पर्याय छुं–एवा भेद रहेता नथी, त्यां द्वैत नथी, विकल्प
नथी, पक्षपात नथी. पूर्वे अनुभवना प्रयत्नकाळमां जे जे
विकल्पो हता, व्यवहारे जेने साधक कहेवाता, ते ज
अनुभवकाळे बाधक छे, एटले साक्षात् अनुभवदशा
वखते ते कोई विकल्पो होता नथी, विकल्पो अलोप थईने
एक परम तत्त्व ज प्रकाशमान रहे छे; नय–निपेक्ष–
प्रमाणना सर्वे विकल्पो निर्वंश थई जाय छे. अहा! आवी
अनुभूति थई त्यारे सम्यग्दर्शन थयुं. आत्माना आवा
अनुभव वगर कोई कहे के अमने सम्यग्दर्शन थई गयुं,
–तो ए मात्र भ्रमणा छे. सम्यग्दर्शनपरिणति राग–द्वेष–
मोहना विकल्पोथी सर्वथा जुदी छे; ते मोहनो पडदो
फाडीने अंदर चैतन्यमां घूसी गई छे.
तंत्री : पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक : ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९७ फागण (लवाजम : चार रूपिया) वर्ष २८ : अंक : प