Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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पधारो सीमंधर भगवान
सं. १९९७ ना फागण सुद बीज.....ज्यारे सोनगढमां विदेहीनाथ सीमंधर
भगवान पधार्या.....त्रीस वर्ष वीती गयां ए वातने! अने ज्ञानीजनोना उज्जवळ
ज्ञानदर्पणमां तो प्रभुजीनी पधरामणी एना करतांय वर्षो पहेलांं थई गई
हती....विदेहीनाथनो वैभव ज्ञानीओए पोताना अंतरमां देखी लीधो हतो....एमना ज
प्रतापे आपणने –भरतक्षेत्रना मुमुक्षुओने भगवान मळ्‌या अने भगवाननो मार्ग
मळ्‌यो....परम उपकार छे संतगुरुओनो के जेमणे आपणने आवा भगवाननो भेटो
कराव्यो....ने भगवाननी ओळखाण करावी.
सोनगढमां भगवाननी पधरामणीनो ए उत्सव दरवर्षे आठ दिवस सुधी
उजवीए छीए.... भक्तिद्वारा आनंदपूर्वक भगवाननो महिमा अने बहुमान करीए
छीए. ज्ञानीना ज्ञानमंदिरमां ने बहारमां जिनमंदिरमां सीमंधर प्रभु पधार्या त्यारथी
सदाय धर्मनी वृद्धिना प्रसंगो बनी रह्या छे......अनेक अनेक प्रकारे भगवाने मोटो
उपकार कर्यो छे.....अहा! जाणे के विदेहमां बेठाबेठा भगवान भरतक्षेत्रमां पण धर्मतीर्थं
प्रवर्तावी रह्या छे. एवो आनंद गुरुदेवना प्रतापे आपणने प्राप्त थाय छे.
अहा! देव–गुरुना शरणे आत्माने साधवानो परम अवसर आपणने प्राप्त
थयो छे. तो हवे आ अवसरमां आपणे सौ मुमुक्षु–साधर्मीओए पण पूरा उल्लासथी
अने पात्रताथी आ देव–गुरुना परिवारमां भळी जवानुं छे. अहा! भगवान आपणा
कहेवाया, ने आपणे भगवानना कहेवाया–एनाथी ऊंचुं बीजुं शुं!
वीतरागी देव–गुरुना आश्रये आपणा सौमां साधर्मीपणानो संबंध
बंधायो....... ‘साचुं सगपण साधर्मीनुं’ –एवा साधर्मीप्रेम माटे हृदयमां हजार हजार
लागणीथी लखवानुं मन थाय छे; आपणा सौना देव एक, सौना गुरु एक, सौनो
सिद्धांत एक, सौनो धर्म एक, सौनुं ध्येय एक, सौनी विचारधारा एक, –केटली महान
एकता....ने केवो मधुर संबंध! आटली महान वातोमां ज्यां एकता छे त्यां बीजी
नजीवी बाबतोमां अटकवानुं केम बने? अरे, एकदेशमां रहेनारा माणसो विभिन्न
जाति अने विभिन्न धर्मना होवा छतां देशनी एकताना गौरवथी परस्पर प्रेमथी रहे छे,
तो ज्यां धर्मनी एकता छे, देव–गुरुनी एकता छे त्यां साधर्मीप्रेमनी शी वात! मुमुक्षु
जैनो जागो........ने आनंदपूर्वक बोलो–
“हम सब साधर्मी एक है.......श्री देव गुरुकी टेक है”