ज्ञानदर्पणमां तो प्रभुजीनी पधरामणी एना करतांय वर्षो पहेलांं थई गई
हती....विदेहीनाथनो वैभव ज्ञानीओए पोताना अंतरमां देखी लीधो हतो....एमना ज
प्रतापे आपणने –भरतक्षेत्रना मुमुक्षुओने भगवान मळ्या अने भगवाननो मार्ग
मळ्यो....परम उपकार छे संतगुरुओनो के जेमणे आपणने आवा भगवाननो भेटो
कराव्यो....ने भगवाननी ओळखाण करावी.
छीए. ज्ञानीना ज्ञानमंदिरमां ने बहारमां जिनमंदिरमां सीमंधर प्रभु पधार्या त्यारथी
सदाय धर्मनी वृद्धिना प्रसंगो बनी रह्या छे......अनेक अनेक प्रकारे भगवाने मोटो
उपकार कर्यो छे.....अहा! जाणे के विदेहमां बेठाबेठा भगवान भरतक्षेत्रमां पण धर्मतीर्थं
प्रवर्तावी रह्या छे. एवो आनंद गुरुदेवना प्रतापे आपणने प्राप्त थाय छे.
अने पात्रताथी आ देव–गुरुना परिवारमां भळी जवानुं छे. अहा! भगवान आपणा
कहेवाया, ने आपणे भगवानना कहेवाया–एनाथी ऊंचुं बीजुं शुं!
लागणीथी लखवानुं मन थाय छे; आपणा सौना देव एक, सौना गुरु एक, सौनो
सिद्धांत एक, सौनो धर्म एक, सौनुं ध्येय एक, सौनी विचारधारा एक, –केटली महान
एकता....ने केवो मधुर संबंध! आटली महान वातोमां ज्यां एकता छे त्यां बीजी
नजीवी बाबतोमां अटकवानुं केम बने? अरे, एकदेशमां रहेनारा माणसो विभिन्न
जाति अने विभिन्न धर्मना होवा छतां देशनी एकताना गौरवथी परस्पर प्रेमथी रहे छे,
तो ज्यां धर्मनी एकता छे, देव–गुरुनी एकता छे त्यां साधर्मीप्रेमनी शी वात! मुमुक्षु
जैनो जागो........ने आनंदपूर्वक बोलो–