Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म फागण
वर्ष २८ २४९७
अंक––प MARCH
चिदानंदभगवाननी स्तुतिरूप मंगळ
अने स्वानुभूतिरूप नमस्कार

(माह सुद पांचमना रोज समयसार–नाटकनी उत्थानिका पूर्ण थया बाद प्रथम
जीव–अधिकारनो प्रारंभ भाईश्री चंद्रकांत हरिलाल दोशीना नवा मकानना मंगल
वास्तु प्रसंगे थयो हतो. ते प्रवचनमांथी भाववाही मंगल प्रसादी अहीं आपी छे.)
भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवे जे समयसार–परमागम रच्युं, तेनी अलौकिक टीका
अमृतचंद्राचार्यदेवे करी छे, तेमां २७८ अध्यात्मरसझरता कळश छे; तेमां मांगळिकनो
पहेलो श्लोक–
नमः समयसाराय स्वानुभूत्या चकासते।
चित्स्वभावाय भावाय सर्व भावांतरच्छिदे।।१।।
आ कळश उपरथी तेना साररूपे पं. बनारसीदासजीए हिंदीमां नाटक समयसार
रच्युं छे; तेमां कहे छे के–
शोभित निज अनुभूति जुत चिदानंद भगवान।
सार पदारथ आतमा, सकल पदारथ जान।।१।।
चिदानंद भगवान आत्मा स्वानुभूतिरूप ज्ञानवडे शोभायमान छे, आ महान
मंगळ छे. धर्मीने आत्मानी स्वानुभूतिमां निजस्वरूपनी प्राप्ति थई छे, ने अपूर्व धर्म
छे, ते मोक्षनुं मंगळ छे.
समयसार एवो चिदानंद भगवान आत्मा, ते पोतानी स्वानुभूतिदशा सहित शोभे
छे. स्वानुभूतिमां अपूर्व आनंदनुं वेदन छे. स्वानुभूति वडे प्रकाशमान थाय एवो प्रत्यक्ष
ज्ञाता अतीन्द्रियस्वभावी आत्मा छे. आवो आत्मा ज जगतमां सारभूत पदार्थ छे. अंतर्मुख
थतां आवा आत्मानी प्रतीति थाय ते मंगळ छे, ते स्वघरमां अपूर्व वास्तु छे.