Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : फागण : २४९७
चिदानंदप्रभु, चिदानंद भगवान..... कोण? के आ आत्मा पोते; तेनो
स्वभाव सिद्धभगवान जेवो शुद्ध छे; आवा शुद्धआत्माने स्वानुभूतिगम्य करवो ते
जगतमां सौथी उत्तम सार छे. आत्मानी शोभा तो पोतानी स्वानुभूति वडे ज छे.
धर्ममां पहेलांमां पहेलुं शुं करवुं? के पोताना आत्मानी अनुभूति करवी. आवी
स्वानुभूतिमां आनंद सहित आत्मा प्रगटे छे–प्रकाशे छे–शोभे छे.
आ जगतमां जेटला पदार्थो छे ते बधायमां श्रेष्ठ–उत्तम–सारभूत शोभावाळो
आ चिदानंदस्वरूप आत्मा ज छे. बाकी संयोगोमां के रागादि परभावोमां कांई सार
नथी. पोताना आत्माना स्वभावमां झुकाव करतां आनंदनो अनुभव थाय छे, ते धर्म
छे. ते ज आत्माने चारगतिमांथी बहार काढीने सिद्धपदमां धारी राखे छे. आवो धर्म ते
मंगळ छे.
आनंदनो अनुभव केम थाय? के पोताना स्वभावनी सन्मुख जोवाथी ज
आनंदनो अनुभव थाय छे. बीजा पंचपरमेष्ठीभगवंतो वगेरेनी सन्मुख जोवाथी
शुभरागनी उत्पत्ति छे. परने अनुसरीने तो राग ज थाय. आत्माने पोताना
स्वभावने अनुसरीने जे अनुभूति थाय ते स्वानुभूति छे, तेमां वीतरागी
आनंद छे.
जुओ, आ समयसारनी अपूर्व शरूआत! शोभित निज अनुभूति जुत’
आत्मानी आवी अनुभूति ते ज परमार्थ नमस्कार छे. पोते पोताना शुद्धस्वभावमां
वळ्‌यो–नम्यो ते परमार्थ नमस्कार छे. अनुभूति वडे पोते पोताने ज नम्यो, एक सेकंड
जे आवो अनुभव करे तेने मोक्षनी प्राप्ति थाय. स्वानुभूतिरूपी बीज ऊगी तेने
केवळज्ञानरूपी पूर्णिमा थशे ज. अज्ञानदशामां आत्मानी शोभा न हती, स्वानुभूति थई
त्यां चिदानंद भगवान पोतानी अनुभूति पर्याय–सहित शोभी ऊठ्यो....अनंतगुणना
आत्मदरबारमां चिदानंदप्रभु शोभे छे. परभावमां आत्मानी शोभा नथी; पोताना
स्वभावनी अनुभूतिमां आत्मा शोभे छे.
जुओ, आ मांगळिकमां चिदानंद भगवाननी स्तुति चाले छे. पोतानो आत्मा ते
ज चिदानंद भगवान छे; तेनी स्तुति कई रीते थाय? के स्वानुभूति