Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २४९७ आत्मधर्म : ३३ :
(प) आपणे एक केवळज्ञानी भगवानने शोधवा छे, –जे नथी स्वर्गमां, नथी
नरकमां, नथी मनुष्यलोकमां, तो ते क््यां हशे?
उत्तर:– सिद्धालयमां बिराजमान सिद्धभगवान; (आ प्रश्नना जवाबमां केटलाके
‘विदेहक्षेत्र’ लख्युं छे, –पण ते बराबर नथी. जो के विदेहक्षेत्रमां केवळीभगवान छे
ए खरुं, पण ते विदेहक्षेत्र तो मनुष्यलोकमां आवी जाय छे, –ज्यारे आपणे तो
मनुष्यलोकनी बहारना केवळीभगवानने शोधवाना हता; ते तो सिद्धलोकमां ज छे.
(६) पांच ज्ञाननां नाम तो तमने आवडता हशे! हवे ते पांच ज्ञानमांथी एक जीव
पासे एक ज ज्ञान छे, ने बीजा जीव पासे चार ज्ञान छे, तो तेमां मोटुं कोण?
उत्तर:– मति–श्रुत–अवधि–मनःपर्यय ए चार ज्ञान, अने पांचमुं केवळज्ञान; तेमांथी
जेमनी पासे एक ज ज्ञान छे ते तो केवळीभगवान छे, केमके केवळज्ञान सदा
एकलुं होय छे, बीजा अधूरा ज्ञान तेनी साथे रहेता नथी; ज्यारे चार
ज्ञानवाळा जीव ते छद्मस्थ–मुनि होय छे, तेमने ऊंचामां ऊंचुं १२मुं गुणस्थान
होय छे, तेमनुं ज्ञान केवळज्ञान करतां अनंतमा भागनुं छे. माटे जे जीव पासे
एक ज ज्ञान छे ते श्रेष्ठ छे.
(७) १४ पगथियानी एक सीडी. तेना चोथा पगथिया उपर चडतां ज भगवान
देखाय; अने तेरमे पगथिये पहोंचतां तो आपणे ज भगवान बनी
जईए.....ए सीडी कई?
उत्तर:– १४ गुणस्थानरूप सीडी, तेनां नाम आ प्रमाणे:–
१. मिथ्यात्व २. सासादन ३. मिश्र ४. अविरत सम्यकत्व प. देशविरत ६.
प्रमतसंयत ७. अप्रमत्तसंयत ८. अपूर्वकरण ९. अनिवृत्तिकरण अथवा
बादरसांपराय १०. सूक्ष्मसांपराय ११. उपशांतमोह १२. क्षीणमोह १३.
सयोगकेवळी १४. अयोगकेवळी.
चोथा गुणस्थाने सम्यग्दर्शन थतां ज सिद्धभगवान जेवा पोताना शुद्धआत्मानुं
दर्शन थाय छे; भगवाननी साची ओळखाण त्यारे थाय छे. अने पछी तेरमुं
गुणस्थान थतां आत्मा पोते अरिहंत भगवान थई जाय छे.
प्रश्नोनां जवाब मोकलनार बाळकोनां नाम;–
प्रदीपकुमार जैन राजकोट; पुष्पेन्द्र जैन; मीना जैन सोनगढ; फाल्गुनीबेन जैन
अमदावाद;