Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २४९७ आत्मधर्म : ३५ :
प्रश्न (२) नीचेना चार जीवो क््या गुणस्थाने हशे?
१. आत्माना भानसहित स्वर्गमांथी मनुष्यमां आवी रहेलो जीव कया गुणस्थाने हशे?
२. आ जीवोने ईश्वरे बनाव्या छे एवो उपदेश करनारा जीव कया गुणस्थाने हशे?
३. वस्त्र पहेरीने आत्मानी निर्विकल्प सामायिकमां बेठेलो जीव कया गुणस्थाने हशे?
४. जेने मोह पण नथी अने जेने सर्वज्ञता पण नथी ते जीव कया गुणस्थाने हशे?
प्रश्न (३) नीचेना १९ अक्षरमां दीवाळी पर्वनुं सूचक एक वाक््य छे–ते सरखुं गोठवी
आपो. (तेमां पहेलो वचलो अने छेल्लो अक्षर फेरववो नहीं. बाकीनां अक्षर
आडाअवळा छे ते सरखा गोठवी आपो–
म ग धा पु न वी थी री वा वा मो क्ष भ र पा प हा र्या छे.
प्रश्न (४) आ चोथा प्रश्नना जवाबमां तमारे एक सुंदर वाक््यनी रचना लखवानी छे–
जेमां नीचेना पांच शब्दोनो समावेश थवो जोईए–(एकथी वधु वाक््य पण लखी
शकाय छे.)
महावीर रत्नत्रय विपुलाचल आत्मा सिद्ध
प्रश्न:– (प) १४ गुणस्थानमांथी मात्र छ गुणस्थान एवा छे के जे सदाय भरपूर रहे
छे,–ते गुणस्थान कया?
प्रश्न:– (६) नीचेनी वस्तुओमांथी तमारामां अत्यारे शुं शुं छे? ने भगवानमां शुं शुं छे?
ज्ञान, राग, मोह, श्रुतज्ञान, केवळज्ञान, अनंतगुण,
उत्पाद–व्यय–ध्रुव, अरूपीपणुं, दुःख पूर्णसुख,
प्रश्न (७) दर आठ वर्षे आपणो आत्मा अरिहंतप्रभुना आत्माने एकवार जरूर स्पर्शे
छे. (क्षेत्र अपेक्षाए) –ते कई रीते? (नाना बाळकोने आनो जवाब न आवडे तो
न लखवो; पण वडीलो पासेथी समजी लेवुं.)
* जैन * (अमे तो जिनवरनां संतान) * जैन *
ता. दसमी मार्चथी वस्तीपत्रक शरू थाय छे. वस्तीपत्रकमां दसमा खानामां आपणे
आपणो धर्म लखाववानो छे. देखीती रीते ज आपणे सौ जैनोए तेमां (J) जैन
लखाववानुं छे. आ संबंधी सूज्ञपाठकोने खूब कहेवाई गयुं छे. आजे तो गुरुदेव पासेथी
मळेला उत्तम संस्कारने लीधे केटलाय हरिजनबंधुओ पण पोताने जैन कहेवडाववामां
गौरव अनुभवे छे. तो जन्मथी ज जेमने “जैन” नाम मळेलुं छे तेओ तो पोताने जैन ज
लखावे–एमां शुं कहेवानुं होय? जिनवरनां सन्तान थवानुं कोने न गमे?