ते बदल अमो गुरुदेवना भवोभवना ऋणी छीए. अमो गुरुदेवना शब्दनो जयनाद
गजावीए छीए. ने रोज जैनसाहित्यनो अभ्यास अमारी लधुमतिथी करीए छीए.
राणपरडा–कामळोल–मोरचूपणा–जाळीया–समढीयाळा–घाणाना ६०–७० माणसो
मांसाहार छोडीने जैनधर्ममां वळ्या छे, ने हजी बीजा वळशे. गुरुदेवनी दयाथी अमे
जैनधर्मनो प्रचार करी रह्या छीए, एम सौ मुमुक्षुओ दर महिने आत्मधर्मनो अभ्यास
करीए छीए. उमराळाना हरिजनभाई श्यामदेव जैननो पत्र आत्मधर्ममां वांचीने
अमारी हरिजन कोमने गौरव लेवा जेवुं छे. खरेखर जैन तो एक सत्यनो राह छे; अने
गुरुदेव कहान सिवाय एनुं स्पष्टिकरण करनार वर्तमानकाळमां भाग्ये ज कोई विभूति
नीकळशे.” आटलुं लख्या पछी भाईश्री सत्यदेवे जैनधर्म संबंधी पंदर बोलमां पोताना
उद्गारो लख्या छे तेमां वीतराग विज्ञान, पंच परमेष्ठी भगवान, तीर्थंकर, रत्नत्रय, छ
तत्त्वोनुं ज्ञान–ए जैनधर्मनुं रहस्य होवानो उल्लेख कर्यो छे. अने छेल्ले छ दोहा लख्या
छे–तेमां लखे छे के–
वीतरागी निधान पामवानो मार्ग कोई महा भाग्ये हाथमां आव्यो छे. वधु ने वधु
सत्संगपूर्वक आत्महितना मार्गमां तमे सौ आगळ वधो एवी शुभेच्छा.) –संपादक