Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 39 of 57

background image
: ३६ : आत्मधर्म : फागण : २४९७
भाद्रोडना हरिजनभाई
सत्यदेव जैननो पत्र
“आनंदसाथ लखवानुं के अमो अहिंया १पमुमुक्षु भाई बहेनो जैनधर्मनो
अभ्यास गुरुदेवनी दयाथी करीए छीए. अमने जे गुरुदेवे हरिजनमांथी जैन बनाव्या
ते बदल अमो गुरुदेवना भवोभवना ऋणी छीए. अमो गुरुदेवना शब्दनो जयनाद
गजावीए छीए. ने रोज जैनसाहित्यनो अभ्यास अमारी लधुमतिथी करीए छीए.
तेमज घणा गाममां अमारा हरिजनभाईओ जैनमार्गे वळी रह्या छे. भाद्रोड–
राणपरडा–कामळोल–मोरचूपणा–जाळीया–समढीयाळा–घाणाना ६०–७० माणसो
मांसाहार छोडीने जैनधर्ममां वळ्‌या छे, ने हजी बीजा वळशे. गुरुदेवनी दयाथी अमे
जैनधर्मनो प्रचार करी रह्या छीए, एम सौ मुमुक्षुओ दर महिने आत्मधर्मनो अभ्यास
करीए छीए. उमराळाना हरिजनभाई श्यामदेव जैननो पत्र आत्मधर्ममां वांचीने
अमारी हरिजन कोमने गौरव लेवा जेवुं छे. खरेखर जैन तो एक सत्यनो राह छे; अने
गुरुदेव कहान सिवाय एनुं स्पष्टिकरण करनार वर्तमानकाळमां भाग्ये ज कोई विभूति
नीकळशे.” आटलुं लख्या पछी भाईश्री सत्यदेवे जैनधर्म संबंधी पंदर बोलमां पोताना
उद्गारो लख्या छे तेमां वीतराग विज्ञान, पंच परमेष्ठी भगवान, तीर्थंकर, रत्नत्रय, छ
द्रव्य, उत्पाद–व्यय–धु्रव, द्रव्य–गुण–पर्याय, जड–चेतन, शुद्ध खानपान अने सात
तत्त्वोनुं ज्ञान–ए जैनधर्मनुं रहस्य होवानो उल्लेख कर्यो छे. अने छेल्ले छ दोहा लख्या
छे–तेमां लखे छे के–
कुदेव–कुगुरु–कुशास्त्रनां गातो तो हुं ज्ञान.
एनाथी छोडावियो जय जय जय गुरु कहान.
परवशपणुं छोडावीने बनाव्यो मुने भगवान,
अनेकान्त ओळखावीयो जयजयजय गुरु कहान.
द्रव्यद्रष्टि देईने नक्की कराव्युं निजनिधान,
आत्मराम ओळखावियो जयजयजय गुरुकहान.
(बंधुओ, तमे जे उत्साहथी जैनधर्मनो आदर करी रह्या छो ने वीतरागी
तत्त्वज्ञानना अभ्यासमां रस लई रह्या छो–ते प्रशंसनीय छे. दुनियानां सर्वोत्कृष्ट
वीतरागी निधान पामवानो मार्ग कोई महा भाग्ये हाथमां आव्यो छे. वधु ने वधु
सत्संगपूर्वक आत्महितना मार्गमां तमे सौ आगळ वधो एवी शुभेच्छा.) –संपादक