Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २४९७ आत्मधर्म : ३९ :
सम्यग्दर्शनना
आठ–अंगनी कथा
समकित सहित आचार ही संसारमें ईक सार
जिनने किया आचरण उनको नमन सो सो वार है।।
उनके गुणोंके कथनसे गुणग्रहण करना चाहिये
अरु पापियोंका हाल सुनके पाप तजना चाहिये।।
* * * * *
पोताना शुद्ध आत्मानी अनुभूति पूर्वकनी निःशंक श्रद्धा जेने थई छे ते
धर्मात्माना सम्यग्दर्शनमां निःशंकतादि आठे निश्चय अंगो समाई जाय छे; तेनी
साथे व्यवहार आठ अंगो पण होय छे. जो के बधा सम्यग्द्रष्टि जीवो निःशंकतादि
आठ गुण सहित होय छे, पण तेमांथी एकेक अंगना उदाहरणरूपे अंजनचोर
वगेरेनी कथा प्रसिद्ध छे; तेनां नाम समन्तभद्र स्वामीए रत्नकरंड श्रावकाचारमां
नीचे प्रमाणे आप्या छे. –
अंजन निरंजन हुए उनने नहीं शंका चित घरी ।१।
बाई अनंतमती सतीने विषय आशा परिहरी ।२।
सज्जन उदायन नृपति वरने ग्लानि जीती भावसे ।३।
सत्–असत्का किया निर्णय रेवतीने चावसे ।४।
जिनभक्तजीने चोरका वह महादूषण ढंक दिया ।५।
जय वारिषेणमुनिश मुनिके चपल चितको थिर किया ।६।
सु विष्णुकुमार कृपालुने मुनिसंघकी रक्षा करी ।७।
जय वज्रमुनि जयवंत तुमसे धर्ममहिमा विस्तरी ।८।
मुमुक्षुओने सम्यक्त्वनो महिमा जगाडे अने आठअंगना पालनमां उत्साह प्रेरे
ते माटे आ आठ अंगनी आठ कथाओ अहीं क्रमसर आपवामां आवशे, तेमांथी पहेली
कथा अहीं रजु थाय छे.