जे रीते छे तेनो स्वीकार न कर्यो तेमां पोतानी भावहिंसा थई. पोतानुं जीवन तो
ज्ञानमय–आनंदमय छे, तेने बदले रागरूप ने पररूप मान्यो एटले पोताना ज्ञान–
आनंदमय जीवननी हिंसा थई. तेनुं फळ संसारनी चारगतिनां दुःख छे.
Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).
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