Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 47 of 57

background image
: ४४ : आत्मधर्म : फागण : २४९७
* वींछीया शहेरना
प्रवचनोमांथी *
आ आत्मा चैतन्यहंस छे. जेम हंस साचा मोतीना चारा चरनारो छे, तेम आ
आत्मा एवो नथी के पोते पोताने न जाणे. पोते पोताने प्रत्यक्ष जाणे–अनुभवे
जेम शरीरने धोळो–रातो–काळो वगेरे वान होय छे, तेम आत्मानो वान केवो
आत्मा पोते सुखस्वभावथी भरपूर चैतन्य सत्ता छे; तेने न मानतां, सुख
परमां माने छे ते पोताना चैतन्यसत्तारूप जीवनने हणे छे. पोतानी सत्ता–जीववुं–टकवुं
जे रीते छे तेनो स्वीकार न कर्यो तेमां पोतानी भावहिंसा थई. पोतानुं जीवन तो
ज्ञानमय–आनंदमय छे, तेने बदले रागरूप ने पररूप मान्यो एटले पोताना ज्ञान–
आनंदमय जीवननी हिंसा थई. तेनुं फळ संसारनी चारगतिनां दुःख छे.