Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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फागण : २४९७ आत्मधर्म : ४५ :
अहो, आत्मानी चैतन्यशक्तिनो विकास एवो अचिंत्य छे के जेने कोई काळ के
अनंत शक्तिसंपन्न आत्मवस्तु, ते अखंडपणे ज्यां श्रद्धामां आवी त्यां तेना
आत्मामां संख्याथी पण अनंत शक्तिओ छे; काळथी पण ते अनंत छे; अने
ज्ञानादि शक्तिमां एवुं अनंत सामर्थ्य छे के जेनो विकास थतां कळा के क्षेत्रनी
मर्यादा वगर बधुं ज जाणे; तेने कोई मर्यादा न होय, संकोच न होय; ज्ञाननो विकास
पूर्ण ज्ञानरूप होय, तेमां वच्चे रागनी आडश न होय. एम आनंदशक्तिनो विकास
अनंत आनंदरूप छे; श्रद्धा पोताना अनंत स्वभावने स्वीकारवानी अनंत ताकातवाळी
छे. ज्ञानस्वरूप आत्मानो कोई परम अद्भुत विलास छे, के जेना विकासमां कोई
संकोच नथी. एकवार विकास थया पछी फरीने कदी तेमां संकोच थतो नथी. आवा
अद्भुत आत्मवैभवने लक्षमां ल्ये तो जगतमांथी महिमा ऊडी जाय ने तेमां सुखबुद्धि
छूटी जाय. हे जीव! तने आवा निजवैभवनो करियावर आपीने संतो मोक्षमां तेडी जाय
छे. तारा आवा सतनो स्वीकार कर! तारामां छे तेनो विश्वास करीने तेमां लक्ष कर.
एटले तारी शक्ति निर्मळपणे खीली ऊठशे.
शरीरनो विकास जडरूप छे. रागनो विकास रागरूप ने दुःखरूप छे; चैतन्यनो