Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ४६ : आत्मधर्म : फागण : २४९७
विकास परम आनंदरूप ने सर्वज्ञतारूप छे. भगवानने सर्वज्ञता ने अतीन्द्रिय आनंद
प्रगट्यो ते क््यांथी आव्यो? अंदर शक्ति हती तेनो विकास थयो. तेम दरेक आत्मामां
तेवी शक्ति छे, ने ते ज विकास पामीने सर्वज्ञतारूपे ने पूर्ण आनंदरूपे खीले छे. एवी
खीले छे के फरी कदी करमाय नहि, संकोचाय नहीं.
अहा, चैतन्यनो प्रवाह–तेना विस्तारमां वच्चे राग न होय, चैतन्यनो विस्तार
चैतन्यरूप ज होय. सूतेला चैतन्यने जागृत करवा माटे जिनवाणी माता आ तेनां
गुणनां गाणां–हालरडां गाय छे. अरे आत्मा! तुं जाग......तारा निजगुणने जो.....ने
आनंदित था.
तारा निजगुण स्वयंसिद्ध छे; ते अन्यथी कराता नथी ने अन्यने करता नथी.
तारा गुणनुं निर्मळ कार्य तारा पोताथी थाय छे. बीजुं कोई तेनुं कारण नथी; तेमज
तारागुणनी निर्मळ परिणति कोई बीजा भावने करती नथी. तारा कारण–कार्य तारामां
ज समाय छे.
अरे जीव! तारो आत्मा चैतन्यसमुद्र तेमां अनंत गुणरत्नो भरेला छे. ते
गुणमां क््यांय रागनो प्रवेश नथी. तारुं शुद्धद्रव्य अनंता शुद्ध गुणो अने तेनी शुद्ध
पर्यायो तेमां तारुं अस्तित्व पूरुं थाय छे. उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप तारी स्वतंत्र सत्ता छे.
तेमां बीजानुं कांई कार्य नथी. स्वाधीन आत्मा पोतानी अनंत शक्तिने विश्वासमां
लईने परिणमे ते मोक्षमार्ग छे ने तेमां रागादिनो अभाव छे.
* * * * *
अमर आतमराम
निज आत्माने जाण्या विना बहु दुःखने पाम्यो अरे!
सिद्ध सुखने झट पामवा जिन–भावना भावुं हवे.
संतो करे छे ध्यान जेनुं परम ज्ञायक भाव हुं,
कदी मरणने पामुं नहीं, छुं अमर आतमराम हुं.