: ५० : आत्मधर्म : फागण : २४९७
बोल मा बोलमा बोल मा रे...
आत्महित विना बीजुं बोल मा...
ज्यारे राजकुमारो पहेली
ज वार बोल्या, –शुं बोल्या?
भरत चक्रवर्ती चिन्तामां छे....अनेक राणीओ चिन्तामां छे; केमके तेमना अनेक
राजकुमारो कांई बोलता ज नथी. जन्म्या त्यारथी मूंगा ज छे, वर्षो वीत्या छतां
एकपण शब्द तेमना मोढामांथी हजी सुधी नीकळ्यो नथी. राजकुमारो बोले ते माटे
अनेक युक्ति उपायो कर्या, पण तेओ तो न बोल्या ते न ज बोल्या. अरे, चक्रवर्तीना
रूपाळा राजकुमारो, शुं जींदगीभर मूंगा ज रहेशे!! शुं तेओ नहि ज बोले? –एनी
चिंतामां भरत चक्रवर्ती वर्तता हता.
एवामां भगवान ऋषभदेव अयोध्यापुरीमां पधार्या.....भरत राजा तेमना
दर्शन करवा गया....साथे ए मुंगा राजकुमारोने पण तेडी गया. (समवसरणमां
तीर्थंकरनो एवो अतिशय होय छे के त्यां मुंगा पण बोलता थाय छे, आंधळा देखता
थाय छे.) राजाए भगवानना दर्शन कर्या, राजकुमारोए पण भक्तिभावथी पोताना
दादाना दर्शन कर्या. –परंतु हजी सुधी तेओ कांई बोल्या नथी.
आखरे भरतचक्रवर्तीए पूछयुं–हे प्रभो! महा पुण्यशाळी एवा आ राजकुमारो,
कांई बोलता केम नथी? शुं तेओ मूंगा छे?
त्यारे भगवाननी वाणीमां आव्युं–हे भरत! ए कुमारो मुंगा नथी; जन्मथी ज
एवामां ए वैरागी राजपुत्रो एक साथे ऊभा थया ने परम विनयपूर्वक