Atmadharma magazine - Ank 329
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 54 of 57

background image
फागण : २४९७ आत्मधर्म : ५१ :
हाथ जोडीने बोल्या–जाणे चैतन्यनी वीणामांथी मधुर रणकर छूटया: अमने हे प्रभो!
मोक्षना कारणरूप एवी मुनिदीक्षा आपो! अमारुं चित्त आ संसारथी उदास छे, आ
संसारमां ने परभावमां क््यांय अमने चेन नथी, अमे अमारा निजस्वभावना
मोक्षसुखनो अनुभव करवा चाहीए छीए–माटे अमने रत्नत्रयरूप एवी मुनिदीक्षा
आपो....जेथी अमे केवळज्ञान प्रगट करीने आ भवबंधनथी छूटीए.– ’ जीवनमां
पहेलवहेला ज कुमारो बोल्या.....पहेलीज वार ते आवुं उत्तम बोल्या!
वाह! भरतचक्रवर्ती अने सभाजनो तो राजकुमारना शब्दो सांभळता ज
स्तब्ध बनी गया, लाखो –करोडो देवो–मनुष्योए तेनी प्रशंसा करी.....तिर्यंचोनां टोळा
पण आश्चर्यकारी ए वैरागी राजकुमारोने नीहाळी रह्या.
राजकुमारो तो पोताना वैराग्यभावमां मग्न छे. प्रभुसन्मुख आज्ञा लईने मुनि
थया..वचनविकल्प छोडीने पाछा निजानंदस्वरूपमां लीन थईने वचनातीत आनंद
अनुभववा लाग्या.....अल्पकाळमां केवळज्ञान प्रगटक करी सिद्धपद पाम्या.
(ए राजकुमारोनुं जीवन आपणने एवो बोध आपे छे के रे जीव! एटला ज
वचन बोल के जेमां तारा आत्महितनुं प्रयोजन होय.....निष्प्रयोजन कोलाहलमां न पड.)
* * * * *
नियमसारना मंगल प्रारंभ प्रसंगे – (फागण सुद बीज)
फागण सुद बीजे सीमंधरनाथनी परम भक्तिपूर्ण पूजनादि बाद नियमसार
परमागमना प्रवचनो (गुजराती पर छठ्ठीवार, ने कुल आठमी वार) प्रारंभ करता
कहानगुरुए कह्युं; हे परमात्मा! आपना जेवा परम वीतराग सर्वज्ञपरमात्मा अमने
मळ्‌या, हवे अमारुं चित्त बीजा मोही–अज्ञानीओने केम नमे? आपना प्रतापे परम
वीतरागी चैतन्यस्वभावने जाण्यो त्यां हवे बीजा परभावोनो आदर हुं केम करुं?
प्रभो! चिदानंदस्वभावनी श्रद्धा अने वीतरागता वडे आपे मोहनो नाश करीने
भवने जीत्या छे, तेथी आप ज अमारा पूज्य छो. भवने जीतनारा भगवाने भवथी
छूटवानो उपाय बताव्यो. भव अने भवनो भाव मारा चिदानंदस्वभावमां नथी, एवा
स्वभावनी आराधना करनारा धर्मीजीव भवने जीतनारा एवा सर्वज्ञ परमेश्वर सिवाय
बीजाने नमता नथी. प्रभो! आप केवळज्ञानवडे जगतने प्रकाशनारा सूर्य छो.....आम
सर्वज्ञने ओळखीने साधकजीव तेमने ज नमे छे. आम सर्वज्ञस्वभावनो आदर करवो ते
मंगळ छे.